मैं आशिक हूँ बहारों का-आशिक १९६२
गये थे उनमें से एक है फिल्म आशिक का ये शीर्षक गीत। इस फिल्म से पूर्व
में आप ४ गीत सुन चुके हैं इस ब्लॉग पर। किसी मोहतरमा के ख्याल में
आशिक होना आम बात है। इसमें कुदरत के नज़रों के साथ साथ कई और
पहलुओं के साथ आशिकी का जिक्र है जो गीत को अलग बनाता है।
इस तरह के गीत राज कपूर कि फिल्मों में कई हैं। इन सभी गीतों में वे इधर
उधार घुमते हुए बेफिक्र से गीत गेट दिखाई देते हैं। फिल्म आवारा के शीर्षक
गीत का ही उदाहरण ले लीजिये। ऐसे प्रेरणादायी गीत उनकी फिल्मों की
विशेषता होते थे। ऐसे गीतों को रचने के लिए गीतकार शैलेन्द्र का एक बार
फिर से तह-ए-दिल शुक्रिया।
गीत के बोल:
मैं आशिक हूँ बहारों का, नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
सदियों से जग में आता रहा मैं
नए रंग जीवन में गता रहा मैं
नए भेस में नित नए देश मैं
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का,इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
कभी मैंने हंस के दीपक जलाए
कभी बन के बादल आंसू बहाए
मेरा रास्ता प्यार का रास्ता
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
चला गर सफ़र को कोई बेसहारा
तो मैं हो लिया संग दिए एक तारा
गाता हुआ दुःख भूलता हुआ
मैं आशिक हूँ बहारों का नज़रों का, फिजाओं का, इशारों का
मैं मस्ताना मुसाफिर हूँ जवां धरती के अनजाने किनारों का
मैं आशिक हूँ बहारों का
..........................................
Main aashiq hoon baharon ka-Aashiq 1962
0 comments:
Post a Comment