दूरी ना रहे कोई-कर्त्तव्य १९७९
में सुना जाने वाला शब्द नहीं है. जीवन का उद्देश्य इसी से
शुरू होता है. कर्तव्यपरायण व्यक्ति को मंज़िल मिल जाती
है. उसकी ज़मीन कमिटमेंट के जल से सींची हुई होती है
अतः उसकी पकड़ कभी कमज़ोर नहीं पड़ती और पांव सदा
मजबूती से धरती पर टिके रहते हैं.
फिल्म लाइन में कितने अभिनेता अभिनेत्री आये और गये
मगर कमिटमेंट की परिभाषा बिरलों के ही समझ आई. आज
के अवसरवादी कमिटमेंट की बात छोडिये जिसको कन्फ्यूज्ड
ज्ञानी फोकस का नाम देते हैं. समाज में मनुष्य एक दूसरे
से भावनाओं के तारों से बंधा रहता है. भाव है तो भावना
का प्रवाह है और अभिव्यक्ति भी. चेतना के उच्च स्तर तक
संवेदनशील लोग ही पहुच पाते हैं. कलाकार, लेखक इनमें से
कुछ ऐसे प्राणी हैं जो इस स्तर को पहुँचते हैं या
४ मिनट का ही तो गाना है. कमबख्त कैसे कर लेती हो ऐसे
सेकण्ड सेकण्ड में स्विचओवर. इतनी स्पीड से तो ब्रेट ली भी
स्विंग नहीं कर पाता. इस ४ मिनट के गाने में दुःख, संतोष,
हर्ष, उत्कंठा, अल्हड़पाना, बचपना सभी भाव ला दिये तुमने.
हीरो बेचारे भौंचक्के नहीं हों तो क्या करें.
गीत है काफ़िल आजार का जिसे लता मंगेशकर ने गाया है.
संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल. काफ़िल आज़र अमरोहवी
को हम ’बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी’ के लिए
जानते हैं.
गीत के बोल:
दूरी
दूरी ना रहे कोई आज इतने करीब आओ
मैं तुममें समां जाऊं तुम मुझमें समां जाओ
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Doori na rahe koi-Kartavya 1979
Artists: Rekha, Dharmendra
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