Mar 1, 2014

ओ मितवा-जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली १९७१

वी शांताराम को शायद फ़िल्मी नायिकाओं से कुछ असंभव
सा कराने का शौक रहा. उनकी फिल्मों के सारे नृत्य देख के
मुझे ये आभास हो चला. एक ऐसा ही गीत है १९७१ की फिल्म
जल बिन मछली नृत्य बिन मछली से. मेरा पसंदीदा फ़िल्मी
गीत है ये. इसमें बैसाखियाँ लेकर नायिका संध्या कुछ कुछ
संभव सा न दिखने वाला नृत्य करती दिखाई देगी आपको.
शांताराम नृत्य नाटिका और वाद्य वृन्द के भी काफी शौक़ीन
थे. आपको उनकी हर फिल्म में नाच गाने समृद्ध मिलेंगे.
अटपटेपन को छू कर लौट आने वाले नृत्य. कल्पनाशीलता
में उनकी, आधुनिक कला का मिश्रण है. अनूठा और अटपटा
के बीच झूलते उनके कुछ दृश्य दांतों तले उँगलियाँ दबाने पर
मजबूर ज़रूर करते हैं. कथानक चयन के मामले में वे काफी
दूरदर्शी और हिम्मतवाले फिल्मकार थे. उन्हें बॉक्स ऑफिस की
गणित में दिलचस्पी नहीं के बराबर रही होगी, मेरा अनुमान है. 

आधुनिक कला के नियमों में पहला ही नियम है-समझ आये न
आये, वाह वाह ज़रूर करो, इससे आप प्रगतिशील और बुद्धिजीवी
समझे जाते हैं. जैसे मेरी कई बेहतर पोस्ट वाह-वाह से वंचित
रह जाती हैं तो मैं ये अनुमान लगता हूँ कि मुझे अभी भी कुछ
बुद्धिजीवी और प्रगतिशील पाठकों की दरकार है. इस गीत के
गीतकार/संगीतकार हैं क्रमशः मजरूह/लक्ष्मी-प्यारे.


   

गीत के बोल:


ओ मितवा ओ मितवा
ये दुनिया तो क्या है
मैं छोड़ दूं ये जीवन तेरे लिए
ओ मितवा ओ मितवा
ये दुनिया तो क्या है
मैं छोड़ दूं ये जीवन तेरे लिए

देख बाहें पसार बन बन के प्यार
हँसती है मौत मिलते हैं नैन
छेड़े भी जा तू साज़ को
थोड़ी अभी बाकी है रैन
छेड़े भी जा तू साज़ को
थोड़ी अभी बाकी है रैन
सर पे खड़ा पल जुदाई का

ओ मितवा ओ मितवा
ये दुनिया तो क्या है
मैं छोड़ दूं ये जीवन तेरे लिए

सुन जा के तेरी दुनिया से मैं
आऊंगी फिर ओ साथिया
पायल पहन तेरी ही धुन
गाऊंगी फिर ओ साथिया
अरे बिन तेरे रहूंगी क्या ?
ओ मितवा ओ मितवा
ये दुनिया तो क्या है
मैं छोड़ दूं ये जीवन तेरे लिए

ओ मितवा ओ मितवा
ये दुनिया तो क्या है
मैं छोड़ दूं ये जीवन तेरे लिए
ओ मितवा ओ मितवा
...................................
O Mitwa-Jal bin machhli nritya bin bijli 1972

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP