मैं शायर बदनाम-नमक हराम १९७३
रज़ा मुराद. उनको इतना मासूम दिखाया गया है कि दर्शकों
को उनसे सहानुभूति हो जाती है. अपने अंतिम चरण पर
पहुँच चुके शायर की इच्छा है नायक उसका लिखा गीत गाये.
गीत सुनते सुनते कुछ तृप्ति कुछ अतृप्ति के भाव के साथ
शायर इस संसार से विदा ले लेता है. अदायगी, गीत संगीत
के लिहाज़ से ये हिंदी फिल्मों के नायब नमूनों में से एक है
और दर्शक इस गीत से बांध जाता है. किशोर के गाये दर्दीले
गीतों में से एक आज भी सुनो वही प्रभाव पैदा करता है जैसा
बरसों पहले किया करता था.आनंद बक्षी की लेखनी का कमाल
है और राहुल देव बर्मन के संगीत का जादू जिसके मिश्रण
से ये गीत बना और किशोर ने इसे अमर कर दिया.
गीत के बोल:
मैं शायर बदनाम
मैं शायर बदनाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
महफ़िल से नाकाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
मैं शायर बदनाम
मेरे घर से तुमको कुछ सामान मिलेगा
दीवाने शायर का एक दीवान मिलेगा
और एक चीज़ मिलेगी
टूटा खली जाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
मैं शायर बदनाम
शोलों पे चलना था काँटों पे सोना था
और अभी जी भर के किस्मत पे रोना था
जाने ऐसे कितने
बाकी छोड़ के काम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
मैं शायर बदनाम
रस्ता रोक रही है
थोड़ी जान है बाकी
जाने टूटे दिल में
क्या अरमान हैं बाकी
जाने भी दे ऐ दिल
सबको मेरा सलाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
मैं शायर बदनाम
मैं शायर बदनाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
महफ़िल से नाकाम
हो ओ ओ मैं चला मैं चला
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Main shayar badnaam-namak Haram 1973
Artists-Rajesh Khanna, Raza Murad
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