हिंदी फिल्मों में बरसात-आँखों में तुम-आग १९९४
पिपरमेंट की खुशबू की तरह. इतना तो अनुमान लगा
सकते हैं हम श्रोता. इस फिल्म में हास्य से भरपूर कई
गीत हैं, ये थोडा गंभीर है. शीत ऋतु में बरसाती गीत
याद आने की वजह है आजकल हो रही बिन मौसम
बरसात. हिंदी फिल्मों के निर्देशकों को बरसात दिखाना
ज़रूरी हो जाता है. इससे ये पता चलता है कि फ़िल्मी
कलाकार भी नहाते हैं और साफ़ सफाई पसंद होते हैं.
उसके अलावा एक सन्देश भी होता है आम आदमी के
लिए- प्रकृति के अनमोल खजाने बारिश का भी लुत्फ़
उठाया जाना ज़रूरी है. बारिश में भीगने का आनंद कुछ
ही लोग लेते हैं. इंसान आनंद ले न ले, पेड पौधे तो
जी भर के खुश होते हैं बारिश के पानी से. बूंदे पढते
ही कैसे खिल उठते हैं सब.
समीर का लिखा गीत आ रहे हैं साधना सरगम और
कुमार सानु. धुन आनंददायी है और इस गीत का
फिल्मांकन भी बेहतर है. दिलीप सेन समीर सेन अपने
समकालीनों से थोड़े बेहतर संगीतकार हैं मगर उन्हें
बहुत ज्यादा अवसर नहीं मिले फिल्मों में.
प्रेम वो खूबसूरत अहसास है जो व्यक्ति का सोचने का
नजरिया पूरी तरह से बदल देता है. एक बहुत ही रोमांटिक
गीत है ये और उम्मीद है आपको पसंद आएगा.
गीत के बोल:
आँखों में तुम हो साँसों में तुम हो
तुम हो मेरी जिंदगी
मेरे करीब हो मेरा नसीब हो
तुम हो मेरी बंदगी
ये पहला प्यार है वफ़ा का इकरार है
तुम हो मेरी हर खुशी ओ सनम ओ सनम
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