अंगिया में अंग न समाये -आग १९९४
उधर चला जाता है.अभी हमें दूसरे शब्दों के बारे में चर्चा बिल्कुल
नहीं की है जिनसे ध्यान आकृष्ट होता है.
इस गीत पर विस्तार से चर्चा करेंगे ये लेजेंडरी गीत जो है. कवि
कहता है “अंगिया में अंग न समाये बलमा” इसका सीधा अर्थ ये
है-कपडे तंग सिल दिए हैं दर्जी ने या, तंग सिलवा दिए गए हैं.
कपडा घटिया निकल गया. कमज़ोर दर्जे का सूत था जो सिकुड
गया. जीवन से पैरेलल ड्रा किया जाए तो अमूमन हर व्यक्ति को
शिकायत होती है अपनी स्थितियों से, किसी को मकान छोटा
लगता है, किसी को अपनी कार, किसी को अपनी सेलेरी.
दूसरी पंक्ति है-“मीठी मीठी चुभन जगाए बलमा”, एक आशावादी
वक्तव्य है, तकलीफ में भी आनंद की अनुभूति. उसके बाद की
पंक्तियों में है-“तक धिन धिन धिना धिन इत्यादि”. ये सब डमी
शब्द हैं इनका अर्थ है-आनंद के बाद मुझे शब्द नहीं सूझ रहे,
इसलिए धम धमा धम, जय हो.
बाकी का भाग चटके लगने के बाद प्रस्तुत किया जायेगा.
पांच फुट की बालाओं के बीच छह फुट की बाला ऐसी लगती है
जैसे तीसरी कक्षा की छात्राओं के बीच आठवीं कक्षा की छात्रा
जबरन घुस आई हो.. नायक की लम्बाई के बारे में तो कहना
व्यर्थ है वो हमेशा ही फिल्मों में जादुई तरीके से अपनी नायिकाओं
से लंबा दिखा है. गाने में आपको महिला पोशाकों की पूर्ण रेंज
देखने को मिल जायेगी, मानो इन कलाकारों ने किसी छोटे से
कपडे के स्टोर पर धावा बोल के जिसके जो समझ में आया वो
पहन लिया हो. गीत को लोकगीत वाला कलेवर देने की कोशिश
की गयी है, मगर ताल से वो फ़िल्मी ही सुनाई देता है. इतने साल
हो गए फ़िल्में देखते फ़िल्मी नृत्य शैली किस स्कूल में सिखाई जाती
है आज तक मालूम नहीं हुआ. जो नृत्य निर्देशक हैं वो किस स्कूल
में ये सब सीखते हैं, मालूम नहीं. अगर स्वतः प्रेरणा से ऐसे नृत्य
उनके दिमाग को सूझ जाते हैं तो दाद देनी होगी उनकी कल्पनाशक्ति
की. काफी फर्टाइल किस्म का दिमाग होता है इनका.
गीत के अंत में बकरियां प्रगट हो जाती है तालियाँ बजाने के लिए.
बकरियों की चाल भी नृत्य वाली है मानो उन्हें भी गीत पसंद आया हो.
जिसने भी इस गाने का संपादन किया है उसको बधाई पशु-प्रेम के लिए.
पीटा की मानद सदस्यता का हक़दार है वो. उसके अलावा निर्देशन भी
कमाल का है-नायक के चेहरे पर पूरे गीत में ऐसे भाव हैं जैसे उसे उस
संगीतमय कसरत से ज्यादा रूचि गुमी हुई भैंस खोजने में है. हिंदी
फिल्म के नायक का ये विश्वामित्री इस्टाइल बहुत कम देखने को मिलता
है. एक शिकायत है बस-धुन बेहतर बनायीं जा सकती थी इस गीत की
अंगिया में अंग न समाये बलमा
मीठी मीठी चुभन जगाए बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
आ जा ना मोरे पिया लागे न मोरा जिया
तक धिन धिन तक धिन धिन
याद पे गिनती हूँ तेरे दिन दिन दिन दिन दिन दिन दिन
अंगिया में अंग न समाये बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
मीठी मीठी चुभन जगाए बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
मेरे नैन नशीले मेरे होंठ रसीले
तू देख तो मुझको मेरे छैल छबीले
मेरी चढ़ती जवानी दरिया का पानी
मेरे बस में नहीं है अब दिलवर जानी
आई है कैसी उम्र चढ़ता है कैसा ज़हर
कटती है रातें तारे गिन गिन गिन
अंगिया में अंग न समाये बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
मीठी मीठी चुभन जगाए बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
कोई कहे यहाँ है, कोई कहे वहाँ है
बतला बेदर्दी मुझे दर्द कहाँ है
क्या हाल बताऊँ कैसे समझाऊँ
दिलदार तड़प के मैं मर जा जाऊं
जगी है कैसी अगन जलता है मेरा बदन
जी न सकूंगी मैं तेरे बिन बिन बिन बिन
तक धिन धिन तक धिन धिन
तक धिन धिन तक धिन धिन
अंगिया में अंग न समाये बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
मीठी मीठी चुभन जगाए बलमा
तक धिन धिन तक धिन धिन
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Angiya mein ang na samaye balma-Aag 1994
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