Jan 4, 2015

ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल-नामुमकिन १९८८

आज एक दैनिक अखबार में राहुल देव बर्मन को एक पत्रकार
ने याद किया इस गीत के साथ-रूठ के तुम तो चल दिए-जलती निशानी 
पंचम को बिछड़े पूरे २१ साल हो गए आज. गीतकार गुलज़ार उनको
आज भी याद किया करते हैं. उन दोनों में मजबूत रिश्ता था . एक और
रिश्ता जो बना रहा मजबूती से साथ वो था किशोर कुमार के साथ जो
किशोर के अवसान के साथ १९८७ में टूटा. किशोर कुमार के निधन से
सबसे ज्यादा क्षति राहुल देव बर्मन के संगीत को हुई. सन ८७ के बाद
इसका असर उनके संगीत में देखा जा सकता है. कुछ कमी सी बनी
ही रही १९९४ तक. बदलते समय, फिल्म उद्योग के बदले हुए समीकरण
समय के साथ छूटते हुए मित्र और साथी इन सबकी पीड़ा शायद आर डी
ने लंबे समय झेली. संगीत पर भी प्रभाव पड़ना लाजिमी था.

उनकी फिल्मों में से एक है-नामुमकिन. गुमनाम सी फिल्म लेकिन
संगीत बढ़िया. इसमें से एक दर्द भरा गीत सुनवाते हैं आज आपको जो
आज के दिन के लिए पर्याप्त है. गीत अनजान ने लिखा है.





गीत के बोल:



ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
जिसकी हमें मिली ये सजा 
ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
जिसकी हमें मिली ये सजा 
कहाँ से कहाँ लायी तू हमें 
हमसे है क्यूँ इतनी खफा 
 
ऐ जिंदगी 
 
कहाँ गए दिन वो सुहाने 
कहाँ खोया प्यार हमारा 
कहाँ उडी क्या चिंगारी 
जल गया ओ सुख सारा 
हो, अपना कहीं कोई नहीं 
ला के कहाँ हमें मारा 
 
ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
जिसकी हमें मिली ये सजा 
ऐ जिंदगी
 
बीते जो दिल पे हमारे 
जा के कहाँ किसको सुनाएँ 
छलके जो आन्ल्खों से दिल के 
आंसू ये किसको दिखाएँ 
हो, कौन सुने दिल का ये गम 
दुश्मन है जग सारा 
 
ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
जिसकी हमें मिली ये सजा 
ऐ जिंदगी
 
जाएँ तो हम कहाँ जाएँ 
सूझे न कोई किनारा 
भर गया जी यहाँ जी के 
छोड़ दे पीछा हमारा 
हो तेरी कसम दुनिया में हम 
आयेंगे न दोबारा 
 
ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
जिसकी हमें मिली ये सजा 
कहाँ से कहाँ लायी तू हमें 
हमसे है क्यूँ इतनी खफा 
ऐ जिंदगी हुई कहाँ भूल 
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Ae zindagi hui kahan bhool-Namumkin 1988

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