सीली हवा छू गयी-लिबास १९८८
मौसम का मिज़ाज काफी महीनों से बिगड़ा हुआ है. आज खोमचे में से एक
पुरानी सी डी निकाली और गाने सुनने बैठ गए. एक गीत जिस पर ध्यान
अटक गया वो था लिबास का-सीली हवा छू गयी.
सीली हवा -इस कंसेप्ट को नदी किनारे या झील किनारे रहने वाले बेहतर
समझ पायेंगे. हवा जब पानी को छूती हुई बहती है तब उसमे नमी आ जाती
है और इसको सीलापन कहेंगे, ज्यादा नमी आये तो गीलापन, उससे भी ज्यादा
आये तो बारिश ही कहेंगे . वैसे मन इस समझ के मामले में अधेढ़ से ज्यादा गधेड
है . ज्यादा टेक्निकलिटी में उलझने से गीत सुनने का मज़ा किरकिरा हो जाता है.
नीली नदी के परे गीला सा चाँद भी खिल गया है गीत में.
गुलज़ार ने सबसे ज्यादा किसी कलाकार को याद किया है तो वे हैं बर्मन जूनियर
अर्थात राहुल देव बर्मन. शायद गुलज़ार को आर डी के संगीत से अधिक लगाव
है. आर डी ने भी गुलज़ार के गीतों के लिए नायाब धुनें बनायीं हैं.
फिल्म रिलीज़ नहीं हुई सन १९८८ में पर उसका संगीत पहले रिलीज़ हो गया
फिल्म शायद बाद में किसी फिल्मोत्सव में दिखाई गयी. सिनेमा हाल में इस
फिल्म को देखने का सौभाग्य शायद मिल जाए हमें भी कभी.
गीत सुना जाए जो आज के लिहाज से बहुत बेहतर गीत है और कभी कभार
इसे सुना जा सकता है. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी प्रमुख
कलाकार हैं.
गीत के बोल:
सीली हवा छू गई
सीला बदन छिल गया
नीली नदी के परे
गीला सा चांद खिल गया
तुम से मिली जो ज़िन्दगी
हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था
तेरे सिवा कोई नहीं
सीली हवा छू गई
सीला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर
लेके चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन ना जला
तेरे बगैर शब ना बुझे
सीली हवा छू गई
सीला बदन छिल गया
जितने भी तय करते गये
बढ़ते गये ये फ़ासले
मीलों से दिन छोड़ आये
सालों से रात ले के चले
सीली हवा छू गई
सीला बदन छिल गया
नीली नदी के परे
गीला सा चांद खिल गया
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Seeli hawa chhoo gayi-Libaas 1994
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