एक हसीना थी - क़र्ज़ १९८०
सुभाष घई की फिल्म क़र्ज़- ज़बरदस्त हिट और इसके
गीत भी सुपर डुपर हिट. सन ८० में डिस्को का बुखार
शुरू हुआ हमारे देश में. इस फिल्म का एक डिस्को गीत
बेहद लोकप्रिय हुआ और पूरे दशक में बजता रहा .
आपको डिस्को गीत फिर कभी सुनवायेंगे, आज सुनिए एक
कहानीनुमा गीत जिसमें काफी उतार चढ़ाव हैं. किशोर और
आशा का गाया ये गीत भी लोकप्रियता की सारी ऊंचाइयां
छू चुका है. पुनर्जन्म की अवधारणा पर बनी फिल्म में इस
गीत के ज़रिये नायक पिछ्ले जन्म के घटनाक्रम को बतला
रहा है और सफ़ेद बाल वाली अभिनेत्री अचंभित है इस
कहानी को सुन कर.
गीत लिखा है आनंद् बक्षी ने और इसका संगीत लक्ष्मी प्यारे
ने तैयार किया है. लक्ष्मी-प्यारे के संगीत सफर में इस फिल्म
का नाम खास है क्यूंकि ये एक बहुत बड़ी हिट फिल्म रही
और इसके संगीत के बाद कुछ ट्रेंड बदला बम्बैया फिल्मों के
संगीत का. इस फिल्म के अलावा और भी फ़िल्में हैं जिनके
संगीत की वजह से ८० के दशक के संगीत की दिशा तय हुई
पोस्ट में ये संशोधन नीरज जी के निवेदन पर किया गया है
अमूमन हर पोस्ट में विवरण देने की कोशिश मेरी रहती है
और टैग में जानकारी समाहित होती है मगर टैग पर नज़र
कम जाती है.
गीत के बोल:
एक हसीना थी, एक दीवाना था
क्या उम्र, क्या समा, क्या ज़माना था
एक दिन वो मिले, रोज़ मिलने लगे
फिर मोहब्बत हुयी, बस क़यामत हुयी
खो गए तुम कहाँ, सुन के ये दास्ताँ
लोग हैरान है, क्योंकि अनजान है
इश्क की वो गली, बात जिसकी चली
उस गली में, मेरा आना, जाना था
एक हसीना थी, एक दीवाना था
उस हसीं ने कहा, सुनो जान-ए-वफ़ा
ये फलक, ये ज़मीं, तेरे बिन कुछ नहीं
तुझपे मरती हूँ मैं, प्यार करती हूँ मैं
बात कुछ और थी, वो नज़र चोर थी
उसके दिल में छुपी, चाह दौलत की थी
प्यार का, वो फकत, इक बहाना था
एक हसीना थी, एक दीवाना था
बेवफा यार ने, अपने महबूब से
ऐसा धोखा किया, ज़हर उसको दिया
मर गया वो जवाँ, अब सुनो दास्ताँ
जन्म लेके कहीं, फिर वो पहुंचा वहीं
शक्ल अनजान थी, अक्ल हैरान थी
सामना जब हुआ, फिर वही सब हुआ
उसपे ये क़र्ज़ था, उसका ये फ़र्ज़ था
फ़र्ज़ को क़र्ज़ अपना चुकाना था
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Ek haseena thi-Karz 1980
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