May 9, 2015

इन्साफ का मंदिर है ये-अमर १९५४

सफलता के प्रतिशत के लिहाज से सोचा जाए तो शायद
नौशाद हिंदी फिल्मों के सबसे सफल संगीतकार माने जाएँ.
उन्होंने दूसरे संगीतकारों की तुलना में कम फिल्मों में
संगीत दिया और सबसे ज्यादा हिट लोकप्रिय संगीत दिया
फिल्मों में. ऐसा नहीं है कि उनकी सभी फिल्मों के गीत
हिट रहे हों. कुछ ऐसी भी फ़िल्में हैं जिनके गीत जनता ने
सुने ही नहीं. लेकिन उनकी ऐसी फ़िल्में कम हैं.

उनके संगीत की विशेषता रही-निरंतरता जिसे अंग्रेजी में
कंसिस्टेंसी कहते हैं. अपनी शैली में उन्होंने बहुत ज्यादा
बदलाव या प्रयोग नहीं किये. पारंपरिक और देसी धुनों
को वे घुमा फिर के प्रस्तुत करते रहे और सफल भी रहे.
उन्हें हम एक अच्छा सेल्समैन कह सकते हैं फ़िल्मी गीतों
का. कुछ शास्त्रीय राग उन्हें भी प्रिय रहे और वे उन पर
आधारित बंदिशें बनाते रहे. प्रतुत गीत राग भैरवी पर
आधारित है.

आइये सुनते हैं फिल्म अमर का यह भक्ति गीत. इसे लिखा
है शकील बदायूनीं ने और गाया है रफ़ी ने.




गीत के बोल:

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है
इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है
इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है
कहना है जो कह दे तुझे किस बात का डर है

है खोट तेरे मन मे जो भगवान से है दूर
है पाँव तेरे फिर भी तू आने से है मजबूर
हिम्मत है तो आ जा, ये भलाई की डगर है

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है

दुःख दे के जो दुखिया से ना इन्साफ करेगा
भगवान भी उसको ना कभी माफ़ करेगा
ये सोच ले हर बात की दाता को खबर है
हिम्मत है तो आजा, ये भलाई की डगर है

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है

है पास तेरे जिसकी अमानत उसे दे दे
निर्धन भी है इंसान, मोहब्बत उसे दे दे
जिस दर पे सभी एक हैं बन्दे, ये वो दर है

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है

मायूस ना हो हार के तक़दीर की बाज़ी
प्यारा है वो गम जिसमें हो भगवान भी राज़ी
दुःख दर्द मिले जिसमें, वही प्यार अमर है
ये सोच ले हर बात की दाता को खबर है

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है
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Insaaf ka mandir hai ye-Amar 1954

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