इशारों को अगर समझो-धर्मा १९७३
प्रसिद्धि किसी विशेष नाम की मोहताज नहीं। उसको
तो प्रतिभा चाहिए परवान चढ़ने के लिए। ये बात एक
कव्वाली के विषय में कही गई थी.
आज आपको ऐसी ही एक कव्वाली सुनवाते हैं जो कि
प्रसिद्ध है मगर जनता को उस फिल्म का नाम अता-पता
मालूम नहीं है. ये है आशा रफ़ी की गयी हुई कव्वाली –
राज़ को राज़ रहने दो. फिल्म धर्मा के लिए इसे लिखा
हैवर्मा मलिक ने और इसकी धुन बनाई है संगीतकार जोड़ी
सोनिक-ओमी ने. ये कव्वाली बहुत बजी है जगह जगह
पर. आकाशवाणी ने भी इसको बजाया। इस क़व्वाली की
वजह से इस एल्बम के एल पी रिकॉर्ड बहुत बिके ।
अदायगी अपने चरम पर है इस कव्वाली में. बिंदु और प्राण
इसे परदे पर गा रहे हैं. फिल्म में प्राण का किरदार बहुत
पावरफुल किस्म का है.
गीत के बोल:
ये खुशी ये महफिलें और ये जो नया अंदाज़ है
समझने वालों समझ लो इसमें भी एक राज़ है
राज़ की बात कह दूं तो जाने महफ़िल में फिर क्या हो
राज़ की बात कह दूं तो जाने महफ़िल में फिर क्या हो
राज़ खुलने का तुम पहले
राज़ खुलने का तुम पहले ज़रा अंजाम सोच लो
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
राज़ की बात कह दूं तो जाने महफ़िल में फिर क्या हो
जुबान पे बात आई कभी रूकती नहीं है, कभी रूकती नहीं है
उठ गयी जो आँख एक बार झुकती नहीं है, अरे झुकती नहीं है
उम्मीदों का सवेरा सामने महफ़िल होने दूं
अभी जो छुपाऊँ दिल तो वो छुपती नहीं है
जो बरसों से छुपी दिल में उसे होंठों पे आने दो
जो बरसों से छुपी दिल में उसे होंठों पे आने दो
राज़ की बात कह दूं तो जाने महफ़िल महफ़िल
महफ़िल में फिर क्या हो
उठे आँखें जो मएह्फिल में उन्हें फोड के रख दूं
वो आँखें फोड के रख दूं
बढे जो हाथ उन हाथों को मैं तोड़े के रख दूं
मेरी जान तोड़ के रख दूं
जो नावाकिफ हैं आज उनसे जा के ये कह दूं
जुबां पे राज़ आया तो जुबां को मोड के रख दूं
खुशी से कोई जीता है फुशी से उसको जीने दो
खुशी से कोई जीता है खुशी से उसको जीने दो
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
उसी को छीन कर तेरी नज़र से दूर कर दूं
हाँ दूर कर दूं
तुझे मैं आहें भरने के लिए मजबूर कर दूं
हाँ मैं मजबूर कर दूं
यहाँ बदनाम कर दूं वहां मशहूर कर दूं
जुबां खुल जाए अगर मेरी तो चकना चूर कर दूं
ज़रा अफसाने के पहले पोटा लगने दो दुनिया को
ज़रा अफसाने के पहले पता लगने दो दुनिया को
राज़ की बात कह दूं तो जाने महफ़िल में, जाने महफ़िल में
जाने महफ़िल में फिर क्या हो
ये सूरज चंद और तारे चले मेरे इशारों पर
चले मेरे इशारों पर
हुकूमत है मेरी दरिया समुन्दर और किनारों पर
समुन्दर और किनारों पर
मैं अपने हाथों से इस दुनिया की तकदीर लिखता हूँ
मगर फिर तरस आता है तेरे जैसे बेचारों पर
नहीं पैदा हुआ जो रोके मेरी राहों को
नहीं पैदा हुआ जो रोके मेरी राहों को
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
तुम्हारी जात क्या है तेरी औकात क्या है
तुम्हारे क्या इरादे ये पहले तू बता दे
हुस्न की मार बुरी है इश्क की हार बुरी है
नज़र के तीर छोडूं तीर को ऐसे तोडूं
अगर घूंघट उठा दूं तो मैं आँख लड़ा दूं
कमर के देख झटके इधर भी देख पलट के
तू मुझको ना पहचाने मुझे तू भी ना जाने
बदन मेरा है कुंदन मेरा दिल भी है चन्दन
मैं चन्दन की खुशबू हूँ मैं चन्दन की खुशबू हूँ
मैं चन्दन मैं चन्दन मैं चन्दन हू-ब-हू हूँ
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो
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Isharon ko agar samjho-Dharma 1973
3 comments:
Happy happy
new new
ईयर ईयर हम बोल देते हैं
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