जिया जिया रे-जब तक है जान २०१२
एक गायक गायिका के भरोसे अपनी गाडी नहीं धकाई. उन्होंने कई
गायकों की सेवाएं ली हैं और उनकी बदौलत कई प्रतिभाएं अपने
मुकाम तक पहुँच पाई हैं. इस बात से एक फायदा है कि संगीतकार
का मूल्य बना रहता है. काश पुराने ज़माने के संगीतकार भी ऐसा
कर पाते.
दूसरा पहलू ये भी है कि जैसा गाना हो वैसा गायक या गायिका. इससे
सहूलियत भी हो जाती है. एक कटु सत्य ये है कि किसी गीतकार या
संगीतकार को जनता तवज्जो नहीं देती जितना कि गायक या गायिका
को. ये ट्रेंड अब थोडा बदला है. जैसे जैसे हमारी शिक्षा प्रणाली में
सुधर होता जा रहा है वैसे वैसे जनता अब संगीतकारों को पहचानने
लगी है भले ही उसे अपने पडोसी राज्य की राजधानी का नाम याद न
हो.
आपने फिल्म शोले का एक गीत अवश्य सुना होगा जो डाकुओं के अड्डे
पर हेमा मालिनी फिल्म में गाती है-आ, जब तक है जान, जाने-जहाँ
मैं नाचूंगी. आपको इस फिल्म का नाम शोले के गाने में मिल जायेगा.
गीत गुलज़ार ने लिखा है और इसे गाया है नीति मोहन के साथ सोफिया
अशरफ ने. यकीन मानिये इस गीत को सुनने के पहले तक मुझे सिर्फ
नीति मोहन का नाम मालूम था , उनका गाया कोई गीत भी मुझे याद
नहीं था इसे सुनने के पहले तक.
गीत के बोल:
चली रे, चली रे
जुनूं को लिए
कतरा, कतरा
लम्हों को पीये
पिंजरे से उड़ा
दिल का शिकरा
खुदी से मैंने इश्क किया रे
जिया, जिया रे जिया रे
छोटे-छोटे लम्हों को
तितली जैसे पकड़ो तो
हाथों में रंग रह जाता है
पंखों से जब छोडो तो
वक़्त चलता है
वक़्त का मगर रंग
उतरता है अक्किरा
उड़ते-उड़ते फिर एक लम्हा
मैंने पकड़ लिया रे
जिया जिया रे जिया रे
हलके-हलके पर्दों में
मुस्कुराना अच्छा लगता है
रौशनी जो देता हो तो
दिल जलाना अच्छा लगता है
एक पल सही, उम्र भर इसे
साथ रखना अक्किरा
ज़िन्दगी से फिर एक वादा
मैंने कर लिया रे
जिया जिया रे जिया रे
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Jiya jiya re-Jab tak hai jaan 2012
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