अब के सजन सावन में-चुपके चुपके १९७५
देखते हैं दूसरी तरह का धोखा. फर्क इतना है कि ये धोखा
नायक नायिका दोनों मिल के दे रहे हैं.
कुछ गीत हम बोलों की वजह से याद रखते हैं तो कुछ उसके
संगीत की वजह से. मेरा ख्याल है कि फिल्म चुपके चुपके का
ये गीत इसके संगीत की वजह से ज्यादा याद रखा गया. जैसा
कि होता है अक्सर आपको किसी गीत की पंक्ति विशेष याद रह
जाती है, ऐसा ही कुछ इस गीत के साथ मैंने अनुभव किया.
इसकी एक पंक्ति-‘इतने बड़े घर में नहीं एक भी झरोखा’ याद
रह गयी. मुखड़े के बाद जो लाइन सीधे दिमाग में आती वो
यही है. इसके बाद वाली लाइन का मतलब मुझे समझ नहीं
आया. झरोखा नहीं है तो धोखा आसानी से दिया जा सकता
है. किस धोखे की बात हो रही है समझ नहीं आया.
गीत कर्णप्रिय है और इसे लिखा है आनंद बक्षी ने जिसकी धुन
बनायीं है बर्मन दादा ने. गायिका को आप पहचान ही लेंगे !
गीत फिल्माया गया है शर्मीला टैगोर पर. ये एक हास्य फिल्म है
जिसमें शर्मिला टैगोर ने यादगार भूमिका निभाई है.
गीत के बोल:
अब के सजन सावन में
आग लगेगी बदन में
घटा बरसेगी, मगर तरसेगी नज़र
मिल न सकेंगे दो मन एक ही आँगन में
अब के सजन सावन में
दो दिलों के बीच खड़ी कितनी दीवारें
कैसे सुनूँगी मैं पिया प्रेम की पुकारें
चोरी चुपके से तुम लाख करो जतन, सजन
मिल न सकेंगे दो मन एक ही आँगन में
अब के सजन सावन में
इतने बड़े घर में नहीं एक भी झरोंखा
किस तरह हम देंगे भला दुनिया को धोखा
रात भर जगाएगी ये मस्त-मस्त पवन, सजन
मिल न सकेंगे दो मन..
तेरे मेरे प्यार का ये साल बुरा होगा
जब बहार आएगी तो हाल बुरा होगा
कांटे लगाएगा ये फूलों भरा चमन, सजन
मिल न सकेंगे दो मन एक ही आँगन में
अब के सजन सावन में
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AB ke sajan sawan mein- Chupke chupke 1975
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