हरी हरी वसुंधरा पे-बूँद जो बन गई मोती १९६७
थोड़े अलग से सुनाई देने वाले अच्छे अच्छे शब्द हों और उसे
जिनका उसे मतलब मालूम नहीं. ऐसे कई गीत हैं फिल्म जगत
के खजाने में जिनके सभी शब्दों का मतलब हम से कईयों ने
टटोलने की कोशिश नहीं की मगर उन्हें बरसों से सुनते आ रहे
हैं. गीतों पर ज्यादा रिसर्च ज्यादा दिमाग वाले लोग किया
करते हैं. कई तो गीत के अस्तित्व पर सवालिया निशान भी
लगा दिया करते हैं. कोई मीटर पर बहस करता मिल जायेगा
आपको तो कोई किलोमीटर पर. किसी के लिए ग्रामर महत्त्व
रखती है तो किसी के लिए राग रागिनी. खैर जहाँ तक रोमांस
का और रोमांटिक गीतों का सवाल है वे किसी भी तरीके से
गाये जाएँ, सुनाये जाएँ, मजमून सुनने वाले के समझ आ ही
जाता है.
आज आपको साहित्यिक गीत ही सुनवाते हैं जो एक १९६७ की
फिल्म-बूँद जो बन गई मोती से लिया गया है. इसे मुकेश ने
गाया है. बोल लिखे हैं भारत व्यास ने और इसकी धुन बनायीं
है सतीश भाटिया ने. इसमें आपको एक शब्द का अर्थ बतला देते
है-वसुंधरा जिसका अर्थ है- पृथ्वी, धरा. गीत हरियाली और प्रकृति
के अद्भुत दृश्यों को समर्पित है
गीत के बोल:
हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशायें देखो रंगभरी, चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है
ये कौन चित्रकार है...
तपस्वीयों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प सी घूमेरदार, घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुये हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के, बगीचे ये बहार के
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार हैं
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा, अपने ललाट की
कण-कण से झाँकती तुम्हें, छबि विराट की
अपनी तो आँख एक है, उसकी हज़ार है
ये कौन चित्रकार है
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Hari hari vasundhara pe-Boond jo ban gayi moti 1967
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