Mar 9, 2016

सब ठाठ पड़ा रह जायेगा-संकल्प १९७४

आज आपको बिना विवरण वाला एक गीत सुनवाते हैं.
आगे ऐसे गीत आपको नियमित रूप से मिलते रहेंगे.
इस ब्लॉग के नियमित पाठकों के सहयोग के लिए
धन्यवाद. आज आपके लिए पेश है नज़ीर अकबराबादी
की एक अमर रचना पर आधारित कैफी आज़मी का
एक गीत.

धन्यवाद देना और शुक्रगुजार होना अपने आप में बहुत बड़े
ईश्वरीय गुण हैं. अगर आप ईश्वर के प्रति शुक्रगुजार हैं कि
आपको दो वक्त की रोटी मिल रही है, (कईयों को वो भी
नसीब नहीं) तो आप वाकई तारीफ़-ए-काबिल इंसान हैं.
जियो और जीने दो एक अच्छा सिद्धांत है. ये सन्देश कभी
कभी आवश्यक सा हो जाता है.

आइये गीत सुनें. विवरण गीत के टैग में उपलब्ध है.



गीत के बोल

सब ठाठ पड़ा रह जायेगा
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
धन तेरे काम ना आयेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

जो पाया है वो बाँट के खा
कंगाल न कर कंगाल न हो
जो सबका हाल किया तूने
एक रोज वो तेरा हाल न हो

इस हाथ से दे उस हाथ से
हो जाए सुखी ये जग सारा
हो जाए सुखी ये जग सारा
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा
जब लाद चलेगा बंजारा

क्या कोठा कोठी क्या बंगला
ये दुनिया रैन बसेरा है
क्यूँ झगडे तेरे मेरे के
कुछ तेरा है ना मेरा है
सुन कुछ भी साथ न जायेगा
जब तूत का बाजा नक्कारा
जब तूत का बाजा नक्कारा

सब ठाठ पड़ा रह जायेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
धन तेरे काम ना आएगा
जब लाद चलेगा बंजारा

एक बंदा मालिक बन बैठा
हर बंदे की किस्मत फूटी
था इतना मोह खजाने से
दो हाथों से दुनिया लूटी
थे दोनों हाथ मगर खाली
उठा जो सिकंदर बेचारा
उठा जो सिकंदर बेचारा

सब ठाठ पड़ा रह जायेगा
जब लाद चलेगा बंजारा
……………………………………………………………….
Sab thaath pada re jayega-Sankalp 1974

0 comments:

© Geetsangeet 2009-2020. Powered by Blogger

Back to TOP