रोऊँ मैं सागर के किनारे-नगीना १९५१
नगीना(१९५१) से है. इसे शैलेन्द्र ने लिखा है और धुन बनाई
है शंकर जयकिशन ने.
सी एच आत्मा प्रीतम आन मिलो गीत से चर्चा में आये थे.
उनकी आवाज़ सहगल की आवाज़ के सबसे नज़दीक थी. इतने
वर्ष हो गए हमें सहगल के गीत सुनते हुए, उनका कोई पुख्ता
क्लोन अभी तक नहीं सुनाई पड़ा अभी तक. आत्मा ने १९४५
के आस पास गाना शुरु किया था. कुछ फ़िल्मी गीत और काफी
गैर फ़िल्मी गीत हैं उनके जो संगीत प्रेमियों को बरसों से
आनंद देते चले आ रहे हैं.
प्रस्तुत गीत नासिर खान पर फिल्माया गया है. नगीना का एक
गीत इस ब्लॉग पर है-कैसी खुशी की ये रात
गीत के बोल:
रोऊँ मैं सागर के किनारे सागर हंसी उड़ाए
क्या जानें ये चंचल लहरें मैं हूँ आग छुपाए
मैं भी इतना डूब चुका हूँ क्या तेरी गहराई
काहे होड़ लगाए मो से काहे होड़ लगाए
रोऊँ मैं सागर के किनारे
तुझ में डूबे चाँद मगर इक चाँद ने मुझे डुबाया
मेरा सब कुछ लूट के ले गई चाँदनी रात की माया
अरमानों की चिता सजा कर मैंने आग लगाई
अब क्या आग बुझाए मेरी अब क्या आग बुझाए
रोऊँ मैं सागर के किनारे
...............................................................................
Rooun main sagar ke kinare-Nagina 1951
Artist-Nasir Khan
0 comments:
Post a Comment