आज हम अपनी दुआओं का-पाकीज़ा १९७१
फिल्मकार थे. भव्य और बड़ी फ़िल्में बनाने का उन्हें भी शौक
हुआ करता था. उनकी फिल्मों के दृश्य कुछ अलग से और
लुभावने भी हुआ करते थे. ऊपरवाला सबको अलग अलग सोच
देता है तो कुछ सोच समझ कर. आर्टिस्टिक माइंड भी तरह
तरह के मिलेंगे आपको. एक कैनवास सभी को पकड़ा दो, एक
थीम दे दो मगर परिणाम जुदा होंगे सभी के.
ये अलग हट के कुछ करने वालों की बदौलत हमें कलाकृतियों
जैसी चीज़ें मिल जाया करती हैं सभी जगह चाहे वो फिल्म उद्योग
ही क्यूँ ना हो. भवितव्यता और अलौकिकता के बीच झूलते उनकी
फिल्मों के कुछ दृश्य आश्चर्यचकित करते हैं और कल्पनाशीलता
की दाद देने को मन करता है.
आइये सन १९७१ की चर्चित फिल्म पाकीज़ा से एक लोकप्रिय गीत
सुनते हैं. इसे कैफ भोपाली ने लिखा और गुलाम मोहम्मद ने
संगीत से सजाया. लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ इस गीत
में चार चाँद लगा रही है. बाकी की कसार कैफ भोपाली ने ‘आज की
रात बचेंगे तो सहर देखेंगे’ लिख कर पूरी कर दी है इस गीत में.
कैफ भोपाली भी अलग-हट-के लिखने के लिए पहचाने जाते हैं.
फिल्म मीना कुमारी की लार्जेर देन लाइफ परफोर्मेंस के लिए जानी
जाती है.
गीत के बोल:
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे
ओ ओ ओ
आप तो आँख मिलाते हुए शरमाते हैं
आप तो आँख मिलाते हुए शरमाते हैं
आप तो दिल के धड़कने से भी डर जाते हैं
फिर भी ये जिद है के हम ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
ओ ओ ओ
प्यार करना दिल-ए-बेताब बुरा होता है
प्यार करना दिल-ए-बेताब बुरा होता है
सुनते आये हैं के ये ख्वाब बुरा होता है
आज इस ख़्वाब की ताबीर मगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
जानलेवा है मुहब्बत का समा आज की रात
शमा हो जायेगी जल जल के धुंआ आज की रात
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे
आज की रात
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख्म-ए-जिगर देखेंगे
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीर-ए-नज़र
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Aaj ham apni wafaon ka asar-Pakeezah 1971
Artist: Meena Kumari, Raj Kumar
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