Aug 20, 2016

लगन मोरे मन की बलम-बाबुल १९५०

लगन शब्द का इस्तेमाल अक्सर खुशनुमा और प्रेरणादायी
गीतों में होता है. दुःख भरे गानों के लिए दूसरे शब्द भी हैं
गीतकारों के पास, मगर लिखने वाला किस सीन को और
स्तिथि को कैसे भांपेगा ये समझना फिल्म के निर्देशक के
लिए भी मुश्किल होता है.

संगीत का जानकार निर्देशक अवश्य इस काम में दखल दे
सकता है. शब्द के लेवल पर बदलाव वाले निर्देशक बिरले हैं
इस फिल्म उद्योग में.

फिल्म: बाबुल
वर्ष: १९५०
गीतकार: शकील बदायूनीं
संगीतकार:नौशाद
गायिका: लता मंगेशकर




गीत के बोल:

लगन मोरे मन की बलम नहीं जाने
लगन मोरे मन की बलम नहीं जाने
बलम नहीं जाने सजन नहीं जाने
लगन मोरे मन की बलम नहीं जाने

लाज की मारी मैं तो मुँह से ना बोलूँ
मुँह से ना बोलूँ
भेद किसी से कभी दिल के न खोलूँ
दिल के न खोलूँ
ठेस जिया पे लागे
ठेस जिया पे लागे
छुप छुप रो लूँ
छुप छुप रो लूँ

तड़प बिरहन की बलम नहीं जाने
बलम नहीं जाने सजन नहीं जाने
लगन मोरे मन की बलम नहीं जाने

डूब न जायें कहीं आशा के तारे
आशा के तारे
नैन चुरा के हाय सैयाँ हमारे
सैयाँ हमारे
नेहा लगाने गये
नेहा लगाने गये
सौतन द्वारे सौतन द्वारे

कदर मेरे धन की बलम नहीं जाने
बलम नहीं जाने सजन नहीं जाने
लगन मोरे मन की बलम नहीं जाने
..........................................................................
Lagan more man ki-Babul 1950


Artist: Nargis

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