तुम चाँद के साथ चले आओ-आशियाना १९५२
उतर कर किया जाए. उसके लिए ज़रूरी नहीं मेथड एक्टिंग
ही की जाए.
स्वाभाविक अभिनय में नर्गिस का कोई सानी नहीं था. उनके
ऊपर जो गीत फिल्माए गए हैं वे भी देखने में आपको ज्यादा
आनंदित करते हैं उसकी वजह अभिनय में बेहतरी है. प्रस्तुत
गीत में जो चेहरे पर भाव हैं वो मेरे हिसाब से किसी टीन-एज
लड़की के चेहरे पर होते हैं-अर्ध परिपक्व से वैसे ही इस गीत
में नर्गिस के चेहरे पर हैं.
मदन मोहन ने कई मधुर धुनें रचीं. कुछ उन्हें पसंद थीं मगर
जनता को ज्यादा पसंद नहीं आयीं, कुछ जनता को पसंद आई
तो उनकी सूची में उन धुनों का नंबर नीचे होता. संगीतकार
अपनी पसंद से रचना रचता है मगर ज़रूरी नहीं उसकी पसंद
जनता की पसंद से मेल खाए. हीरा रांझा का संगीत सर चढ
कर बोला मगर वो क्वालिटी के लिहाज़ से मदन मोहन का
सर्वश्रेष्ठ आउटपुट नहीं है. लोकप्रियता और क्वालिटी के बीच
बड़ी बारीक सी रेखा है. कर्णप्रिय ज़रूरी नहीं कि राग रागिनियों
के क्लिष्ट टुकड़े मिला के ही तैयार किया जाए. वो सरल तरीके
से भी हो सकता है और प्रभावी ढंग से. लोक संगीत की जो
विशेषता है वो उसकी सरलता है जो आम आदमी के आसानी से
पल्ले पड़ता है.
सुनते हैं आशियाना से लता मंगेशकर का एक बेहतर गीत जो
कानों को गुदगुदाने वाला है और सही मायने में लंबे समय तक
सुने जाने वाले गीतों में एक है. राजेंद्र कृष्ण की रचना है ये.
आपको पप्पू जैसे अंदाज़ में नायक भी आता दिखाई देगा गीत
में. उसका आना भी ज़रूरी है आखिर को उसे ही तो बुलाया जा
रहा है इसमें.
गीत के बोल:
तुम चाँद के साथ चले आओ
ये रात सुहानी हो जाए
कुछ तुम कह दो कुछ हम कह दें,
और एक कहानी हो जाये
तुम चाँद के साथ
ख़ामोश किनारे सोये हैं
ख़ामोश किनारे सोये हैं
चुपचाप हैं नदिया की लहरें
इठलाते हुए तुम आ जाओ
लहरों में रवानी हो जाये
तुम चाँद के साथ चले आओ
ये रात सुहानी हो जाए
बीती हुई घड़ियों की यादें
बीती हुई घड़ियों की यादें
ऐसे में अगर हम दोहराएं
मासूम मोहब्बत मुसकाये
बेदार जवानी हो जाये
तुम चाँद के साथ चले आओ
ये रात सुहानी हो जाए
कुछ तुम कह दो कुछ हम कह दें,
और एक कहानी हो जाये
तुम चाँद के साथ
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Tum chand ke saath chale aao-Ashiana 1952
Artist: Nargis
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