Aug 14, 2016

वो ही उदी उदी घटाएं हैं-मेरा घर मेरे बच्चे १९६०

कम सुने गए मगर मधुर संगीत देने वाले संगीतकारों की धुनों
में से एक पेश है आज. श्वेत श्याम युग वाली फिल्म सन १९६०
की मेरा घर मेरे बच्चे में ये गीत हसरत जयपुरी के बोलों पर
मुकेश ने गाया है.

शब्द विशेष से पूरे मामले का अर्थ बदल जाता है. यहाँ एक शब्द
प्रयोग में लाया गया है वो भी मुखड़े में, जो कम चलन वाला है,
‘उदी’, इसका अर्थ ढूँढने के लिए आपको गूगल देव की मदद लेना
पड सकती है.

गायन शैली में ४० के दशक का असर है. एक लाइन को दो दो
बार रिपीट करके गाया गया है. मुखडा केवल एक बार गाया
गया है, ऐसे गीत हमें पुराने संगीतकारों ने काफी सुनाये हैं. गीत
के फॉर्मेट में थोडा बदलाव हुआ ५० के दशक में और वो काफी
हद तक आज भी कायम है. आजकल एक नया ट्रेंड बना हुआ
है-असमान पंक्तिर्यों वाले गीतों को गाने का ट्रेंड.




गीत के बोल:

वोही उदी उदी घटाएं हैं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
वही भीगी-भीगी हवाएं हैं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं

है कली से गुल को मिले हुए,
यहाँ ज़ख़्म-ए-दिल है खिले हुए
वही कोयलों की सदाएं है
वही कोयलों की सदाएं है
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं

जो किये थे वादे निगाहों में
वही उड़ गए आए हवाओं में
वही खोई-खोई फ़िज़ाएं हैं
वही खोई-खोई फ़िज़ाएं हैं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं

यहीं कल तो तुम मेरे साथ थे
गोरे हाथों में मेरे हाथ थे
मगर आज होँठों पे आहें हैं
मगर आज होँठों पे आहें हैं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
एक तुम नहीं हो तो कुछ नहीं
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Wo hi udi udi ghatayen-Mera ghar mere bachche 1960

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