खाई थी क़सम-दिल ने पुकारा १९६७
हैं आप. असीमित गहराई वाला वो गीत ही काफी है फिल्म को
याद रखने के लिए.
आज सुनते हैं लता का गाया एक दर्द भरा गीत. किसी दिलजले
की कराह बहुत बेचैन करने वाली होती है. कुछ ऐसा ही इस गीत
में भी है. गीत ज्यादा प्रचलित नहीं है मगर मधुर है और टूटे
हुए दिल शायद इसे सुनना ज्यादा पसंद करते हैं.
बोल इन्दीवर के हैं और संगीत कल्याणजी आनंदजी का. राजश्री
इसे परदे पर गा रही हैं.
गीत के बोल:
खाई थी क़सम इक रात सनम
तूने भी किसी के होने की
होने की
अब रोज़ वहीं से आती है
आवाज़ किसी के रोने की
रोने की
खाई थी क़सम
आती है तेरी जब याद मुझे
बेचैन बहारें होती हैं
आती है तेरी जब याद मुझे
बेचैन बहारें होती हैं
मेरी ही तरह इस मौसम में
घनघोर घटाएँ रोती हैं
कहती है फ़िज़ा रो मिल के ज़रा
ये रात है मिल के रोने की
रोने की
खाई थी क़सम
माँगी थी दुआ मिलने की मगर
कुछ दर्द मिला कुछ तन्हाई
माँगी थी दुआ मिलने की मगर
कुछ दर्द मिला कुछ तन्हाई
तू पास ही रह कर पास नहीं
रोती है मिलन की शहनाई
हसरत ही रही इस दिल के हसीं
अरमानों के पूरे होने की
होने की
खाई थी क़सम इक रात सनम
तूने भी किसी के होने की
होने की
अब रोज़ वहीं से आती है
आवाज़ किसी के रोने की
रोने की
खाई थी क़सम
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Khai thi kasam-Dil ne pukara 1967
Artists: Rajshri, Sanjay Khan
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