मान करे क्या रंग रूप का-कवि १९५४
शटर बंद कर रखा है. इसे मनुष्य को अपने प्रयासों से खोलना
पढता है. जिसके ह्रदय में प्रेम बसता है उसके लिए अंतर्मन की
आँखें खोलना ज्यादा आसान है.
चमड़ी के रंग और ऊपरी सौंदर्य पर दुनिया मोहित होती है. ये भी
एक प्रकार का छलावा है जिससे अच्छे अच्छे नहीं बच पाए. इन
सब से जप परे हो जाता है असली सौंदर्य से साक्षात्कार उसी का
होता है.
राजेंद्र कृष्ण द्वारा रचित अच्छे दार्शनिक गीतों में से एक जिसे आपने
शायद कभी सुना हो, नहीं सुना तो आज सुन लें.
गीत के बोल:
तेरी इक इक अदा झूठी
वफ़ा झूठी हया झूठी
चलेगी ऐ हसीना कब तलक़
आखिर हवा झूठी
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
तुझ में खुशबू ढूंढ रही है
तुझ में खुशबू ढूंढ रही है
ये दुनिया की भूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
तुझे देख के लाख बुझा ले
प्यास कोई अंखियन की
तुझे देख के लाख बुझा ले
प्यास कोई अंखियन की
बिना बास का फूल बनेगा
क्या शोभा बगियन की
डाल का फूल चढ़े मन्दिर में
डाल का फूल चढ़े मन्दिर में
तू रस्ते की धूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
बिना ज्योत का दीपक है तू
बिना तेल की बाती
बिना ज्योत का दीपक है तू
बिना तेल की बाती
जब तन उजला और मन काला
फिर काहे इतराती
शबनम खुद को सागर समझे
शबनम खुद को सागर समझे
ये शबनम की भूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
मान करे क्या रंग रूप का
तू काग़ज़ का फूल है
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Maan kare kya roop rang ka-Kavi 1954
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