गरीबों का पसीना बह रहा है-नया आदमी १९५६
लिखा है राजेंद्र कृष्ण ने. कहते हैं किसी गरीब की हाय नहीं लेना
चाहिए, ये बात जिन्हें जीवन के कड़वे अनुभव है उन्हें अच्छी तरह
से मालूम होगी.
किसी भी चीज़ को हल्का आंकना मानव की भूल है. एक कहावत
है घूरे के भी दिन फिरते हैं, एकदम सटीक बैठती है समय के साथ.
जो आज रजा है वो कल फ़कीर हो सकता है और जो गरीब है वो
अमीर बन सकता है. कुदरत के करिश्मों के बारे में कौन जानता है
भला. ये मनुष्य को अचंभित करते आये हैं और करते रहेंगे.
गीत के बोलों पर गौर करें तो आपको ये आज के समय में भी
प्रासंगिक लगेगा. इस गीत को बने ६० साल हो गयी हैं यानि कि
३ पीढ़ियों ने इस गीत को सुन लिया है.
गीत के बोल:
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
ये पानी बहते बहते कह रहा है
कभी वो दिन भी आएगा
ये पानी रंग लाएगा ये पानी रंग लाएगा
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
ये बूँदें देख लेना एक दिन तूफ़ान लायेंगी
ज़मीन तो है ज़मीन ये आसमान को भी हिलाएंगी
गरीबों के घरों तक चल के हुड भगवान आएगा
ये पानी रंग लाएगा ये पानी रंग लाएगा
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
सितम का हद से बढ़ जाना तबाही की निशानी है
बदलते हैं सभी के दिन पुराणी ये कहानी है
ज़माना एक दिन गिरते हुओं को उठाएगा
ये पानी रंग लाएगा ये पानी रंग लाएगा
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
अगर जल कर किसी मजबूर ने फ़रियाद कर डाली
तो कुदरत के खजाने देखना हो जायेंगे खाली
ज़मीन फट जायेगी
ज़मीन फट जायेगी सूरज का गोला टूट जायेगा
ये पानी रंग लाएगा ये पानी रंग लाएगा
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
ये पानी बहते बहते कह रहा है
कभी वो दिन भी आएगा
ये पानी रंग लाएगा ये पानी रंग लाएगा
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
गरीबों का पसीना बह रहा है
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Gareebon ka paseena beh raha hai-Naya Aadmi 1956
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