ओ सजना बरखा बहार आई-परख १९६०
सुना तो ऐसा लगा ठण्ड के मौसम में बरफ वाला गीत सुनना
चाहिए फिर ये तो एक बरखा ऋतु वाला गीत है. अब कहने को
तो सयाने कहते हैं-कुंवार के महीने में करेला नहीं खाना चाहिए
मगर जनता मानती कहाँ है वो तो बरसात में भी पालक दबा
के खाती है. ठण्ड में आइसक्रीम तो सामान्य बात हो चली है.
कोई भी गीत इस हिसाब से बिन मौसम वाला नहीं बचा, जब
मर्ज़ी आये वो सुनो. आजकल का ट्रेंड यही बोलता है, बस एक
चीज़ ज्यादा होना चाहिए धम धम.
प्रस्तुत गीत में धम धम नहीं है, ये तो कानों को गुदगुदाने वाला
गीत है. जी हाँ इस जुमले का इस्तेमाल सर्वप्रथम हमने ही किया
था नेट पर, आप सही है. श्रेणी का शौकीनों के लिए इस गीत को
हमने ‘ओ सजना’ हिट्स में रखा है. वैसे तो ये हिंदी फिल्मों के
आज तक के सबसे खूबसूरत बरसाती गीतों में से एक है और
हम इसे बरखा या बहार हिट के नाम से ज्यादा पहचानते हैं.
सुनते हैं फिल्म परख से शैलेन्द्र का लिखा और सलिल चौधरी
द्वारा संगीत से सजाया गीत जिसे लता ने गाया है. इस धुन पर
सलिल चौधरी ने लता से ही एक बंगाली गैर फ़िल्मी गीत भी
गवाया है जो शायद फिल्म के गीत से काफी पहले बना हुआ
है और लोकप्रिय भी है. अगर गाने वाले को आप १० नंबर देते
हैं तो इस गीत के तबला बजाने वाले को भी ८-९ नंबर तो दे ही
दीजिए.
गीत के बोल:
ओ सजना बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई अँखियों मे प्यार लाई
ओ सजना बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई अँखियों मे प्यार लाई
ओ सजना
तुमको पुकारे मेरे मन का पपीहरा
तुमको पुकारे मेरे मन का पपीहरा
मीठी मीठी अग्नि में जले मोरा जियरा
ओ सजना बुरका बहार आई
रस की फुहार लाई अँखियों मे प्यार लाई
ओ सजना
ऐसी रिमझिम में ओ सजन प्यासे प्यासे मेरे नयन
तेरे ही ख्वाब में खो गए
ऐसी रिमझिम में ओ सजन प्यासे प्यासे मेरे नयन
तेरे ही ख्वाब में खो गए
सांवली सलोनी घटा जब जब छाई
सांवली सलोनी घटा जब जब छाई
अँखियों में रैना गई निंदिया न आई
ओ सजना बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई अँखियों मे प्यार लाई
ओ सजना
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O sajna barkha bahar aayi-Parakh 1960
Artist: Sadhana
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