चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी-अरमान १९५३
के मामले में थोडा फर्क हो सकता है-पहले दिल में बल्लियाँ उछलती
थी तो अब दिल कबड्डी भी खेल लेता है. सालों साल विशेष रूप से
दिल के लिए बनाया गया खाद्य तेल खा खा के ३ पीढ़ियों के दिल
मजबूत हो गए हैं और अब वे कुछ भी कर सकते हैं. इसकी पुष्टि
आपको भविष्य में आने वाले किसी गीत की पंक्ति में हो जायेगी जब
गीतकार लिखेगा-दिल ने वज्रासन किया.
गीत जब बढ़िया हो तो लिखने की खुजली स्वतः शुरू हो जाती है.
अब घासलेट पानी मिला होगा तो लालटेन की बत्ती चट चट की आवाज़
के साथ ही जलेगी. मुझसे आप साहित्यिक उपमा, पोहे, दोसे की उम्मीद
ना ही किया कीजिये. उसके लिए कई वाचलानंद मौजूद हैं नेट पर जो
इतने समर्थ हैं कि उनके बतलाई हुई गाने की व्याख्या पढते पढते
गीतकार भी शरमा जाएँ.
इस खूबसूरत गीत के गीतकार हैं साहिर और संगीतकार बर्मन दादा.
आशा भोंसले इसे गा रही हैं परदे पर मधुबाला के लिए.
गीत के बोल:
चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
ओ चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
तुम हो परदेसी क्या जाने किस दिन
छोड़ जाओ मुझे तुम अकेली
जिस का अंजाम हो आहें भरना
हम न बूझेंगे ऐसी पहेली
दिल का दरवाज़ा न खटखटाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
ओ चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
तुमने मेरी नज़र में समा के
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
तुमने मेरी नज़र में समा के
मेरी रातों की निंदिया चुरा ली
देखते देखते आरज़ू ने
एक बस्ती अनोखी बसा ली
मेरी दुनिया पे ऐसे न छाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
मैं हूँ अल्हड़ सजन मैं न जानूँ
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
मैं हूँ अल्हड़ सजन मैं न जानूँ
ये लगाने निभाने की रस्में
क्या खबर कैसे चुपके ही चुपके
कर लिया तुमने दिल अपने बस में
धड़कनों को न यूँ गुदगुदाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
ओ चाहे कितना
ओ चाहे कितना मुझे तुम बुलाओ जी
नहीं बोलूँगी नहीं बोलूँगी
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Chahe kitna mujhe tum bulao ji-Armaan 1953
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