तुम मुझे यूँ भुला (लता)-पगला कहीं का १९६९
मैंने कई लोगों से सुनी और उस पर उनकी व्याख्या भी
सुनी. जो दुनिया के प्रपंच से बेखबर हो उसे जनता वैसे
भी पागल करार देती है.
दो फ़िल्में इस थीम पर मैंने देखी पगला कहीं का और
कोहरा. कोहरा फिल्म का अंत दुखी करने वाला था.
वैसे तो कोई वजह नहीं होती किसी कहानी पर आप
दुःख व्यक्त करें मगर चलचित्र में ये सब इतना सजीव
होता है कि दर्शक का उस कथानक से जुड़ाव अपने आप
हो चलता है. अगर ये नहीं होता तो सिनेमा के परदे
पर गुब्बारे जैसे बड़े बड़े आंसू देख के जनता बाल्टियाँ
नहीं भरती अपने आंसुओं से.
गीत सुनते हैं जिसमें डॉक्टर बनी आशा पारेख मरीज
बने शम्मी कपूर को दिलासा दे रही हैं. हसरत जयपुरी
का लिखा गीत है जिसे लता ने गाया है. इस गीत का
दूसरा वर्ज़न आप सुन चुके हैं पहले जो रफ़ी ने गाया
है.
गीत के बोल:
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
तुम मुझे यूँ
तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे
बीती बातों का कुछ ख्याल करो
कुछ तो बोलो कुछ हमसे बात करो
बीती बातों का कुछ ख्याल करो
कुछ तो बोलो कुछ हमसे बात करो
राज़-ए-दिल मैं तुम्हें बता दूंगी
मैं तुम्हारी हूँ मान जाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे
मेरी खामोशियों को समझो तुम
ज़िन्दगी याद में गुज़ारी है
मेरी खामोशियों को समझो तुम
ज़िन्दगी याद में गुज़ारी है
मैं मिटी हूँ तुम्हारी चाहत में
और कितना मुझे मिटाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे
दिल ही दिल में तुम्हीं से प्यार किया
अपने जीवन को भी निसार किया
दिल ही दिल में तुम्हीं से प्यार किया
अपने जीवन को भी निसार किया
कौन तड़पा तुम्हारी राहों में
जब ये सोचोगे जान जाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे
हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे
हाँ तुम मुझे
.................................................................
Tum mujhe yun bhula(Lata)-Pagla kahin ka 1969
Artists: Asha Parekh, Shammi Kapoor