इक लड़की भीगी-भागी सी-चलती का नाम गाडी १९५८
आपने सैकड़ों बार पढ़ लिया सुन लिया होगा. कभी गौर
किया इसकी पंक्तियों पर-सावन की सूनी रातों में. बारिश
की रातें अजीब सी सन्नाटेदार होती हैं. या तो बारिश की
आवाज़ आती मिलेगी आपको, मेंढकों के टर्राने की या फिर
झींगुरों की तेज टिर्र टिर्र. तीन अंतरों की तीन पंक्तियों
में रात का अलग अलग वर्णन है. बस एक चीज़ समझ
नहीं आई वो दूसरे अंतरे की-पगली सी काली रात में. ये
रात पगली है या फिर लड़की?
मुरलीधरन और हरभजन ने दू(डू)सरा बहुत बाद में फेंकना
शुरू किया था, हमारे फ़िल्मी गीतकार तो बहुत पहले ये
करिश्मे कर चुके हैं. अब देखिये ये दूसरा भी दूसरे अंतरे
में ही है. अगडम.बगडम.तिकडम.इत्यादि ग्रुप में भाषा की
कलाबाजियां खाने और खिलाने वाले कुछ इस पर परकास
डालेंगे?
गीत के और गीत में मौजूद लोगों के अलावा संगीत के
सौंदर्य पर बड़े बड़े लेख पहले लिखे जा चुके हैं अतः हम
उस पक्ष पर कुछ नहीं कहेंगे.
गीत के बोल:
इक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
इक लड़की भीग भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
दिल ही दिल में जली जाती है
बिगड़ी बिगड़ी चली आती है
दिल ही दिल में जली जाती है
बिगड़ी बिगड़ी चली आती है
झुंझलाती हुई बलखाती हुई
सावन की सूनी रातों में
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
इक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
डगमग डगमग लहकी लहकी
भूली भटकी बहकी बहकी
डगमग डगमग लहकी लहकी
भूली भटकी बहकी बहकी
मचली मचली घर से निकली
पगली सी काली रात में
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
इक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
तन भीगा है सर गीला है
उस का कोई पेच भी ढीला है
तन भीगा है सर गीला है
उस का कोई पेच भी ढीला है
तनती झुकती चलती रुकती
निकली अंधेरी रात में
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
इक लड़की भीगी भागी सी
सोती रातों में जागी सी
मिली इक अजनबी से
कोई आगे न पीछे
तुम ही कहो ये कोई बात है
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Ek ladki bheegi bhagi si-Chalti ka naam gaadi 1958
Artists: Kishore Kumar, Madhubala
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