मैं जब भी अकेली होती हूँ-धर्मपुत्र १९६१
के सम्मुख आ नहीं पाते. दोनों किस्म के कथानक अक्सर दर्शक
नकार दिया करते हैं. सन १९६१ की फिल्म धर्मपुत्र एक अच्छा
विषय लेकर बनाई गयी फिल्म है जिसके गीत भी गंभीर किस्म
के हैं. सही मायने में ये सोचने को मजबूर करने वाली फिल्म है.
मनोरंजन अपनी जगह है, सन्देश देने वाली कहानियां कम आती
हैं देखने में. कुछ कहानियों में समस्यापूर्ति का अभाव होता है और
वे दर्शकों के सम्मुख एक बड़ा प्रश्नचिन्ह छोड़ जाती हैं मानो फिल्म
ही जनता से पूछ रही हो-क्या हल होना चाहिए समस्या का.
आशा भोंसले कुछ संगीतकारों ने ईमानदारी से कुछ गंभीर गीत भी
गाने को दिए उनमें ओ पी नैयर, एन दत्ता, रवि और आर डी बर्मन
प्रमुख हैं. नाम और भी हैं मगर उन नामों को जानने वाले पाठक
अंग्रेजी ब्लॉगों की पप्पी ही लिया करते हैं क्यूंकि उनका मानना
है भुट्टा खाने में मज़ा तब आता है जब उसको मेज़ या कोर्न बोला
जाए और स्वाद तभी आता है जब ५ रूपये का भुट्टा ५० रूपये में
खरीदा जाए. इसलिए इधर हम इन चार संगीतकारों के नाम तक ही
चर्चा सीमित रखते हैं. एन दत्ता गरीबों के संगीतकार ही रह गए और
उन्हें बी ग्रेड और सी ग्रेड फिल्मों में संगीत दे देकर ही अपनी रोटी
जुटानी पड़ी. क्या आप मान सकते हैं जिस संगीतकार ने धूल का फूल,
मिलाप जैसी फिल्मों के संगीत की रचना की, उसको मुख्य धारा में बाद
में काम नहीं मिला.
गीत पर बात की जाए जिसमें यादो के झरोखे से एक मन झाँक रहा
है कुछ अर्धपकी संभावनाओं के फलीभूत होने की ओर. अमूमन
गीतकार लिखते हैं-शरमाना, घबराना. यहाँ कोंफिडेंस लेवल कुछ डेंस
है इसलिए शब्द हैं-शरमाना और बल खाना. पहले की युवतियां
ज्यादा बल खाया करती थीं. आज की युवतियां तो बल खिला दिया
करती हैं.
ऐसे ड्रामाटिक गीत के लिए माला सिन्हा जैसी भाव प्रवण अभिनेत्री
उपयुक्त पसंद थी. गीत के बोलों के हिसाब से माला ने एक एक भाव
किसी मूक अभिनय के शो की तरह परदे पर फ्रेम दर फ्रेम स्केच
कर दिया है. निर्देशक का भी जवाब नहीं जिसके ज़रूरत से ज्यादा
किये गए प्रयास ज़रा भी खलते नहीं हैं. गीत पार्श्व में बज रहा है.
गीत के बोल:
मैं जब भी अकेली होती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो
मस्ताना हवा के झोंकों से हर बार वो परदे का हिलना
परदे को पकड़ने की धुन में दो अजनबी हाथों का मिलना
आँखों में धुंआ सा छा जाना
आँखों में धुंआ सा छा जाना साँसों में सितारे से खिलना
बीते दिन याद दिलाते हो बीते दिन याद दिलाते हो
मुड मुड के तुम्हारा रस्ते में तकना वो मुझे जाते जाते
और मेरा ठिठक कर रुक जाना चिलमन के करीब आते आते
नज़रों का तरस कर रह जाना
नज़रों का तरस कर रह जाना एक और झलक पाते पाते
बीते दिन याद दिलाते हो बीते दिन याद दिलाते हो
बालों को सुखाने की खातिर कोठे पे मेरा वो आ जाना
और तुमको मुक़ाबिल पाते ही कुछ शरमाना कुछ बल खाना
हमसायों के डर से कतराना
हमसायों के डर से कतराना घरवालों से डर के घबराना
बीते दिन याद दिलाते हो बीते दिन याद दिलाते हो
बरसात के भीगे मौसम में
बरसात के भीगे मौसम में सर्दी की ठिठुरती रातों में
पहरों वो यूँ ही बैठे रहना हाथों को पकड़ कर हाथों में
और लंबी लंबी घड़ियों का
और लंबी लंबी घड़ियों का कट जाना बातों बातों में
बीते दिन याद दिलाते हो बीते दिन याद दिलाते हो
रो रो के तुम्हें खत लिखती हूँ
रो रो के तुम्हें खत लिखती हूँ और खुद पढ़ कर रो लेती हूँ
हालत के तपते तूफान में ज़ज्बात की कश्ती खेती हूँ
कैसे हो कहाँ हो कुछ तो कहो
कैसे हो कहाँ हो कुछ तो कहो मैं तुमको सदाएं देती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम पुचके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाते हो
बीते दिन याद दिलाते हो
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Main jab bhi akeli hoti hoon-Dharmputra 1961
Artists: Mala Sinha, Rehman
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