रुक जा ज़रा किधर को चला-इज़्ज़त १९६८
में बतलाते रहते हैं. कई अनूठी श्रेणियों से हमारा पाला
पड़ा गीत सुनते सुनते. वो महंगे वाले अंग्रेजी ब्लॉगों ने
भी हमें कई श्रेणियाँ सुझाईं- सीधा हाथ ऊपर हिट्स,
उल्टा हाथ ऊपर हिट्स, एक टांग हवा में हिट्स, नाड़े के
संग चड्डी हिट्स, बिना नाड़े की चड्डी हिट्स, इत्यादि.
इनमें भी हीरो और हीरोईन के गाने अलग अलग. डबल
श्रेणियाँ हो गईं.
आज आपको ‘रुक जा’ थीम वाला एक गाना सुनवा रहे
हैं. रक जा थीम से आपको दो गीत तो याद होंगे ही-
रुक जा-मिस्टर एक्स नीं बॉम्बे, रुक जा ओ जाने वाली
कन्हैया फिल्म का.
ये है लता मंगेशकर का गया इज़्ज़त फिल्म का गीत
जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा है. लक्ष्मी प्यारे ने
इसकी तड़कती फड़कती धुन तैयार की है.
गीत के बोल:
रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
रुक जा ओ दीवाने फिर पछतायेगा
ऐसी चाहने वाली कहीं ना पायेगा
रुक जा ओ दीवाने फिर पछतायेगा
ऐसी चाहने वाली कहीं ना पायेगा
ठीक नहीं तरसाना छोड़ भी दे तड़पाना
कर ले यही ठिकाना मत शरमा दुनिया से
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
बात चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले
बाट चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले
बाट चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले
हाय ये तेरी जवानी अलबेली मस्तानी
हो गई मैं दीवानी तुझसे आँख मिला के
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
लूट के दिल को मेरे क्यूँ अंधेर करे
यही है रुत मिलने की काहे देर करे
लूट के दिल को मेरे क्यूँ अंधेर करे
यही है रुत मिलने की काहे देर करे
सुन ले मेरी दुहाई कर ले आज सगाई
थाम ले नरम कलाई गोरा हाथ बढ़ा के
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
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Ruk ja kidhar ko chala-Izzat 1968
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