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Oct 3, 2018

जागी बदन में ज्वाला-इज़्ज़त १९६८

सन १९६८ की फिल्म इज़्ज़त के गाने खूब बजने वाले
गाने रहे और काफी लंबे समय तक निरंतर बजते रहे.

किसी किसी गाने में कुछ ज्योमेट्री की थ्योरम की तरह
मुखड़े की पंक्तियाँ ४-५ बार रिपीट होती हैं. ये ट्रेंड शुरू
हो गया था ६० के दशक में और इसे ९० के दशक के
कुछ संगीतकारों ने आगे बढ़ाया अपनी ड्यूटी समझ कर.

सुनने वालों के दिमाग पे इतना जोर डाल दो कि एक
ज्वाला उसके मन में भी उठ जाये. अरे गीत सुनिए,
कहाँ उलझ गए. हम तो बस यूँ ही...

साहिर के बोल हैं और लक्ष्मी प्यारे का संगीत. इसे
लता मंगेशकर गा रही हैं जयललिता के लिये. इस
गीत में टाला, बखेड़ा और खटकूं ऐसे शब्द हैं जिन्हें
दूसरे गीतकार प्रयोग में नहीं लाते थे.



गीत के बोल:

जागी
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
मना मना कर हारी माने नहीं मन मतवाला
बैरी तूने हठ ना छोड़ी मैंने तुझे कितना टाला

जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला

आते जाते राहों में छेड़ा
इन्हीं तेरी बातों से पड़ा ये बखेड़ा
आते जाते राहों में छेड़ा
इन्हीं तेरी बातों से पड़ा ये बखेड़ा
अच्छी दी पहचान तेरे दो नैनों ने
अच्छी दी पहचान तेरे दो नैनों ने
अरे घायल कर दी जान तेरे दो नैनों ने
हूँ ऊं ऊं ऊं ऊं
हो ओ ओ ओ ओ ओ
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
हूँ जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला

रूठे मेरी आँखों से सपने
हुए तेरे ख्वाब में दिन थे जो अपने
रूठे मेरी आँखों से सपने
हुए तेरे ख्वाब में दिन दी जो अपने
अबसे पहले हाल न ऐसा देखा था
अबसे पहले हाल न ऐसा देखा था
अरे सोलह साल में साल न ऐसा देखा था

हूँ ऊं ऊं ऊं ऊं
हो ओ ओ ओ ओ ओ
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला

तेरे लिये रातो को भटकूं
आते जाते लोगो की नज़रो में खटकूं
तेरे लिये रातो को भटकूं
आते जाते लोगो की नज़रो में खटकूं
कैसी हलचल डाली मेरी जवानी में
कैसी हलचल डाली मेरी जवानी में
अरे जुल्मी तूने आग लगा दी पानी में

हूँ ऊं ऊं ऊं ऊं
हो ओ ओ ओ ओ ओ
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
हूँ जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
मना मना कर हारी माने नहीं मन मतवाला
बैरी तूने हठ ना छोड़ी मैंने तुझे कितना टाला

जागी जागी
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
जागी बदन में ज्वाला सैयां तूने क्या कर डाला
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ
………………………………….
Jaagi badan mein jwala-Izzat 1968

Artists: Jayalalita, Dharmendra

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Mar 15, 2017

रुक जा ज़रा किधर को चला-इज़्ज़त १९६८

हम आपको समय समय पर गीतों की श्रेणियों के बारे
में बतलाते रहते हैं. कई अनूठी श्रेणियों से हमारा पाला
पड़ा गीत सुनते सुनते. वो महंगे वाले अंग्रेजी ब्लॉगों ने
भी हमें कई श्रेणियाँ सुझाईं- सीधा हाथ ऊपर हिट्स,
उल्टा हाथ ऊपर हिट्स, एक टांग हवा में हिट्स, नाड़े के
संग चड्डी हिट्स, बिना नाड़े की चड्डी हिट्स, इत्यादि.
इनमें भी हीरो और हीरोईन के गाने अलग अलग. डबल
श्रेणियाँ हो गईं.

आज आपको ‘रुक जा’ थीम वाला एक गाना सुनवा रहे
हैं. रक जा थीम से आपको दो गीत तो याद होंगे ही-
रुक जा-मिस्टर एक्स नीं बॉम्बे, रुक जा ओ जाने वाली
कन्हैया फिल्म का.

ये है लता मंगेशकर का गया इज़्ज़त फिल्म का गीत
जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा है. लक्ष्मी प्यारे ने
इसकी तड़कती फड़कती धुन तैयार की है.



गीत के बोल:

रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे

रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे

रुक जा ओ दीवाने फिर पछतायेगा
ऐसी चाहने वाली कहीं ना पायेगा
रुक जा ओ दीवाने फिर पछतायेगा
ऐसी चाहने वाली कहीं ना पायेगा
ठीक नहीं तरसाना छोड़ भी दे तड़पाना
कर ले यही ठिकाना मत शरमा दुनिया से
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे

बात चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले

बाट चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले
बाट चले तू ऐसे जैसे मोर चले
तेरे रूप के आगे कोई ना ज़ोर चले
हाय ये तेरी जवानी अलबेली मस्तानी
हो गई मैं दीवानी तुझसे आँख मिला के
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे

लूट के दिल को मेरे क्यूँ अंधेर करे
यही है रुत मिलने की काहे देर करे
लूट के दिल को मेरे क्यूँ अंधेर करे
यही है रुत मिलने की काहे देर करे
सुन ले मेरी दुहाई कर ले आज सगाई
थाम ले नरम कलाई गोरा हाथ बढ़ा के
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे

रुक जा ज़रा हां
किधर को चला हां
रुक जा ज़रा किधर को चला
मैं सदके तेरे पे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे हे
बाबू रे बाबू रे बाबू रे
……………………………………………..
Ruk ja kidhar ko chala-Izzat 1968

Artists:

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Mar 9, 2017

ये दिल तुम कभी लगता नहीं-इज्ज़त १९६८

आपको उन फिल्मों से जिनके नाम में इज्ज़त शब्द आता है
कम गीत सुनवाए हैं अभी तक. ये किसी ब्लॉग पंडित ने तो
नहीं बोला कि आप ऐसे नाम वाली फिल्मों के गाने ज्यादा
शामिल करंगे तो पाठक ज्यादा आकर्षित होंगे. ये तो सूची
देखते समय देखा इस शब्द पर ज्यादा ध्यान गया नहीं.
पाठकों का क्या है वो आज कल व्हाट्सएप और फेसबुक पर
ज्यादा ठक ठक करते हैं.

आज सुनते हैं फिल्म इज्ज़त से एक मशहूर दोगाना जिसे लता
और रफ़ी ने गाया है. साहिर का लिखा गीत है और तर्ज़ है
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की. तसव्वुर जैसे भारी शब्दों के बावजूद
इसे गुनगुनान आसान है जबकि इसकी धुन भी घुमावदार है.
कैसे भी इंग्रेडियेंट्स हों गीत के, है मगर सुनने में मधुर.




गीत के बोल:

ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें
ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें
तसव्वुर में कोई बसता नहीं हम क्या करें
तुम्ही कह दो अब ऐ जाने वफ़ा हम क्या करें
लुटे दिल में दिया जलता नहीं हम क्या करें
तुम्ही कह दो अब ऐ जाने अदा हम क्या करें

ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें

किसी के दिल में बस के दिल को तड़पाना नहीं अच्छा
किसी के दिल में बस के दिल को तड़पाना नहीं अच्छा
निगाहों को छलकते देख के छुप जाना नहीं अच्छा
उम्मीदों के खिले गुलशन को झुलसाना नहीं अच्छा
हमें तुम बिन कोई जंचता नहीं हम क्या करें
तुम्ही कह दो अब ऐ जानेवफ़ा हम क्या करें

लुटे दिल में दिया जलता नहीं हम क्या करें

मुहब्बत कर तो लें लेकिन मुहब्बत रास आये भी
मुहब्बत कर तो लें लेकिन मुहब्बत रास आये भी
दिलों को बोझ लगते हैं कभी ज़ुल्फ़ों के साये भी
हज़ारों ग़म हैं इस दुनिया में अपने भी पराये भी
मुहब्बत ही का ग़म तन्हा नहीं हम क्या करें
तुम्ही कह दो अब ऐ जाने-अदा हम क्या करें

ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें

बुझा दो आग दिल की या इसे खुल कर हवा दे दो
बुझा दो आग दिल की या इसे खुल कर हवा दे दो
जो इसका मोल दे पाये उसे अपनी वफ़ा दे दो
तुम्हारे दिल में क्या है बस हमें इतना पता दे दो
के अब तन्हा सफ़र कटता नहीं हम क्या करें
लुटे दिल में दिया जलता नहीं हम क्या करें
ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें
............................................................................
Ye dil tum bin kahin lagta nahin-Izzat 1968

Artists: Dharmendra, Tanuja

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Jan 14, 2011

क्या मिलिए ऐसे लोगों से-इज्ज़त १९६८

अजनबियों की भीड़ में नायक पहुँचता है। अजनबियों
के लिए वो जाना पहचाना है, बस वही एक बाकियों को
नहीं पहचानता। उन अजनबियों में से एक उसको भाई कह
कर पुकारती है । ऐसे मौके पर उससे गीत गाने की
गुज़ारिश की जाती है और वो अपने दिल की भड़ास गीत
के माध्यम से निकलता है। गीत के साथ शायद कोई
अंग्रेजी खेल हो रहा है जिसको हम फैंसी ड्रेस के नाम
से पुकारते हैं। इसमें आपको पुराने ज़माने की सब
विलायती नृत्य शैलियों का समावेश मिलेगा। आनंद
उठायें एक contrast वाले गीत का। सर में तेल की पूरी बोतल
बोतल चुपड़े हीरो को देखने का सौभाग्य आपको कम ही
ही फिल्मों में मिला होगा। वो ऐसा है की किरदार की मांग होगी
इसलिए निर्देशक ने नायक को काले रंग से भी पोत डाला है।




गीत के बोल:

क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे,

क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे,

खुद से भी जो खुद को छुपाये,
क्या उनसे पहचान करें,
क्या उनके दामन से लिपटें?,
क्या उनका सम्मान करें?,
जिनकी आधी नीयत उभरे,
आधी नीयत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे

दिलदारी का ढोंग रचाकर,
जाल बिछाए बातों का,
जीते जी का रिश्ता कहकर,
सुख ढूंढें कुछ रातों का,
रूह की हसरत लाभ पर आये,
जिस्म की हसरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे

जिनके ज़ुल्म से दुखी है जनता,
हर बस्ती हर गावों में,
दया धरम की बात करें वो,
बैठ के सजी सभाओं में,
दान का चर्चा घर घर पहुंचे,
लूट की दौलत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे

देखें इन नकली चेहेरों की,
कब तक जय जय कार चले,
उजले कपड़ों की तह में,
कब तक काला संसार चले,
कब तक लोगों की नज़रों से,
छुपी हकीकत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे

क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,
असली सूरत छुपी रहे
...........................
Kya miliye aise logon se-Izzat 1968

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