जिन्हें नाज़ है हिन्द पर-प्यासा १९५७
के नाश्ते के अवसर पर इसे सुन लीजिए, पाचन क्रिया
दुरुस्त हो जायेगी.
रफ़ी के गाये गीत की धुन तैयार की है एस डी बर्मन
ने. बोल साहिर के हैं.
गीत के बोल:
ये कूचे ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवाँ ज़िन्दगी के
कहाँ हैं कहाँ है मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये पुरपेच गलियाँ ये बदनाम बाज़ार
ये ग़ुमनाम राही ये सिक्कों की झंकार
ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये सदियों से बेख्वाब सहमी सी गलियाँ
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियाँ
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
वो उजले दरीचों में पायल की छन छन
थकी-हारी साँसों पे तबले की धन धन
ये बेरूह कमरों में खाँसी की ठन ठन
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये फूलों के गजरे ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें ये गुस्ताख फ़िकरे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
यहाँ पीर भी आ चुके हैं जवाँ भी
तनोमंद बेटे भी अब्बा मियाँ भी
ये बीवी भी है और बहन भी है माँ भी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
मदद चाहती है ये हौवा की बेटी
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत ज़ुलयखां की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कूचे ये गलियाँ ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
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Jinhen naaz hai Hind par-Pyasa 1957
Artist: Guru Dutt
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