Apr 12, 2017

ज़माने ने मारे-बहारों के सपने १९६७

फिल्म बहारों के सपने के सारे गीत लाजवाब हैं. मजरूह ने
इसमें एक अविस्मरणीय गीत लिखा है जो फिल्म में दो
बार प्रकट होता है. जीवन की कड़वी सच्चाई बयां करने
वाला ये गीत रफ़ी ने गाया है.

गीत राजेश खन्ना पर फिल्माया गया है. इसकी धुन बनाई
है राहुल देव बर्मन ने.



गीत के बोल:

ज़माने ने मारे जवाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
पले थे जो कल रंग में धूल में
हुए दर-ब-दर कारवाँ कैसे कैसे
ज़माने ने मारे जवाँ कैसे कैसे

हज़ारों के तन कैसे शीशे हों चूर
जला धूप में कितनी आँखों का नूर
चेहरे पे ग़म के निशाँ कैसे कैसे
ज़माने ने मारे जवाँ कैसे कैसे

लहू बन के बहते वो आँसू तमाम
कि होगा इन्हीं से बहारों का नाम
बनेंगे अभी आशियाँ कैसे कैसे
ज़माने ने मारे जवाँ कैसे कैसे
………………………………………………………….
Zamane ne mare-Baharon ke sapne 1967

Artist: Rajesh Khanna

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