किस्मत तो देखो-अदालत १९४८
रंगीन फिल्मों के दौर तक पहुंचे. सन १९४२ की फिल्म किती हासिल
से लेकर उन्होंने १९७६ की फिल्म जानकी तक अपना निर्देशन कैरियर
चलाया. सन १९६८ की फिल्म एक कली मुस्काई उनकी निर्देशित शायद
आखिरी हिंदी फिल्म थी. उसके बाद उन्होंने २-३ मराठी फिल्मों का
निर्देशन किया. ‘आपकी सेवा में’ फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने किया
जिसमें लता मंगेशकर को पहला गीत गाने का अवसर मिला.
प्रकाश झा की फिल्म अभिशप्त(१९८८) में उन्हें परदे पर भी देखा गया
और संभवतः ये उनका आखिरी फ़िल्मी कनेक्शन रहा. उन्हें सन १९६३
की फिल्म आज और कल के लिए अधिक जाना जाता है.
आज आपको सन १९४८ की फिल्म अदालत से एक गीत सुनवा रहे हैं
रफ़ी की आवाज़ में. गीत लिखा है महिपाल ने और इसकी धुन बनाई है
दत्ता दावजेकर ने. इस फिल्म में बाबूराव पेंढारकर और शालिनी प्रमुख
कलाकार हैं.
गीत उस समय का है जब रफ़ी ज्यादा लोकप्रिय गायक नहीं थे. फिल्म
भी ज्यादा चली नहीं थी तो उसके गीत भी समय के साथ हाशिए पर
चले गए.
गीत के बोल:
किस्मत तो देखो हमसफ़र
किस्मत तो देखो हमसफ़र
चार कदम चले नहीं
चार कदम चले नहीं
इस तरह जुदा हुए
के आज तक मिले नहीं
आज तक मिले नहीं
किस्मत तो देखो
दिल ने तो की दुआ बहुत
लेकिन ना आ सकी बहार
फूल उम्मीदों के मेरे
खिलाये भी खिले नहीं
खिलाये भी खिले नहीं
किस्मत तो देखो
दिल ने तो चाहा था के अब
कह दें अपना माजरा
उल्फत ने सी दिए ऐसे लब
हिलाए भी हिले नहीं
हिलाए भी हिले नहीं
किस्मत तो देखो
रौशन थी जिनसे ये ज़मीन
रौशन थी जिनसे ये ज़मीन
यूँ गुल हुए मेरे चिराग
जलाये भी जले नहीं
जलाये भी जले नहीं
किस्मत तो देखो हमसफ़र
चार कदम चले नहीं
इस तरह जुदा हुए
के आज तक मिले नहीं
किस्मत तो देखो
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Kismat to dekho-Adalat 1948
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