May 1, 2017

एक दिन लाहौर की ठंडी सड़क-सगाई १९५१

ये है इन संभावित श्रेणियों वाला गीत-ठंडी गीत, सड़क गीत,
शहर के नाम वाला गीत, साइकिल गीत और कुछ ना समझ
आये तो ‘एक दिन’ गीत. वैसे गीत में जूते का भी जिक्र है
दो तीन पंक्तियों बाद, अतः इसे जूता गीत भी कह सकते हैं.

इस ब्लॉग के गुप्त पाठकों में वे श्रेणी बनाने वाले भी हैं जो
किसी ज़माने में ऑरकुट इत्यादि फोरम में श्रेणियों की पोस्ट
बना बना के खूब पकाया करते थे. उनका उद्देश्य अलग होता
था मगर आम जनता की दिमाग चटाई हो जाया करती थी.
उनके पोस्ट के वजन में बाकी पोस्ट कहीं दब जाया करते थे.

हम तो बस ये कर रहे हैं-तेरा तुझको अर्पण. तुमने हमें पकाया
थोडा हम भी तुम्हें पकायेंगे.

गीत राजेंद्र कृष्ण ने लिखा है और इसे शमशाद बेगम, रफ़ी और
स्वयं सी रामचंद्र ने गाया है जिन्होंने इस गीत की धुन भी तैयार
की है.





गीत के बोल:

एक दिन लाहौर की ठण्डी सड़क पर शाम को
जा रहे थे साइकल पर हम ज़रूरी काम को
अजी सामने से आ रही थीं बुलबुलों की टोलियाँ
रोक कर साइकल लगे हम सुनने मीठी बोलियाँ

उठ तेरी
बिगड़ गई बनते-बनते बात
हुई वो जूतों की बरसात
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी
साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी साफ़
बिगड़ गई बनते-बनते बात
हुई वो जूतों की बरसात
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़

चले थे करने कारोबार
सड़क पर कर बैठे क्यों प्यार
हो गया पल भर में ये हाल
के उड़ गये सर के सारे बाल
के उड़ गये सर के सारे बाल
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी
साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी साफ़
बिगड़ गई बनते-बनते बात
हुई वो जूतों की बरसात
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़

मिला ये उलफ़त का ईनाम
मिला ये उलफ़त का ईनाम
हो गये घर-घर में बदनाम
हो गये घर-घर में बदनाम
गये थे बन के ये गुलफ़ाम
वापिस आये घुटना थाम
ये वापिस आये घुटना थाम
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी
साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी साफ़
बिगड़ गई बनते-बनते बात
हुई वो जूतों की बरसात
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़

कहूँ मैं एक पते की बात
कहूँ मैं एक पते की बात
ये ज़ालिम दिल है बड़ा बदज़ात
ये ज़ालिम दिल है बड़ा बदज़ात
इसी दिल की थी करतूत
इसी ने पड़वाये हैं जूत
इसी ने पड़वाये हैं जूत
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी
साफ़ हो गयी साफ़
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़ हो गयी साफ़
बिगड़ गई बनते-बनते बात
हुई वो जूतों की बरसात
तबीयत साफ़ हो गयी साफ़
…………………………………………………….
Ek din Lahore ki thandi sadak-Sagai 1951

Artists: Gope, Yakub, Rehana

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