मैं नशे में हूँ –दो गुंडे १९५९
‘मैं नशे में हूँ’ शब्द आते हैं. एक तो फिल्म का नाम ही
इन शब्दों से बना है और उसका शीर्षक गीत है जिसमें
ये शब्द आते हैं.
आज आपको १९५९ की फिल्म दो गुंडे से रफ़ी का गाया
गीत सुनवायेंगे. मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत है और
इसमें थोडा हास्य का पुट भी है. इस गीत की धुन बनाई
है गुलाम मोहम्मद ने.
गीत के बोल:
मैं नशे में हूँ मैं नशे में हूँ
दोस्तों ने जबसे छोड़ा मैं मज़े में हूँ
मैं नशे में हूँ मैं नशे में हूँ
दोस्तों ने जबसे छोड़ा मैं मज़े में हूँ
मैं नशे में हूँ
पी के आँसू हँस रहा हूँ क्या करूँ मजबूर हूँ
पी के आँसू हँस रहा हूँ क्या करूँ मजबूर हूँ
कैसा दुश्मन दोस्तों की ठोकरों से चूर हूँ
फिर भी ज़िंदा क्या कहूँ किस सिलसिले में हूँ
मैं नशे में हूँ
मैं हूँ मुफ़लिस मैं लफ़ंगा पूछते हो नाम क्या
मैं हूँ मुफ़लिस मैं लफ़ंगा पूछते हो नाम क्या
ज़ात कैसी कैसा घर दर मुझको इनसे काम क्या
रास्ते में आँख खोली रास्ते में हूँ
मैं नशे में हूँ
हर बुराई कर के फिर भी मुझसे रहना दूर दूर
हर बुराई कर के फिर भी मुझसे रहना दूर दूर
ऐ शरीफ़ो मैं मिलूँ तो मुझसे कहना दूर दूर
जानवर हूँ आदमी तो देखने में हूँ
मैं नशे में हूँ मैं नशे में हूँ
दोस्तों ने जबसे छोड़ा मैं मज़े में हूँ
मैं नशे में हूँ
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Main nashe mein hoon-Do gunde 1959
Artist: Ajit
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