Jul 9, 2017

हाल क्या है दिलों का-अनोखी अदा १९७३

गीत याद रखने की कोई वैलिड वजह ना भी हो तो कभी
कोई सॉलिड वजह बन जाती है. उदाहरण के लिए इसी गीत
को लें जो कव्वालीनुमा है. इसे कई बार सुना मगर इसका
कवर वर्ज़न सुना एक बार जिसमें गायक कुछ यूँ गा रहा
था-जिसको देखो वही आज बेहोंस है. बेचारे शुद्धतावादी तो
इसे सुन के वाकई में बेहोश हो जाएँ.

अनोखी अदा में इसे परदे पर जीतेंद्र गा रहे हैं. मजरूह के
लिखे गीत को गाया है किशोर कुमार ने लक्ष्मी प्यारे की
तर्ज़ पर. ये गीत काफी लोकप्रिय है 



गीत के बोल:

हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम
हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम
आप का मुस्कुराना ग़ज़ब ढा गया
हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम
आप का मुस्कुराना ग़ज़ब ढा गया
इक तो महफ़िल तुम्हारी हसीं कम न थी
इक तो महफ़िल तुम्हारी हसीं कम न थी
उस पे मेरा तराना ग़ज़ब ढा गया
इक तो महफ़िल तुम्हारी हसीं कम न थी
उस पे मेरा तराना ग़ज़ब ढा गया

हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम

अब तो लहराया मस्ती भरी छाँव में
अब तो लहराया मस्ती भरी छाँव में
बाँधो दो चाहे घुँघरू मेरे पाँव में
बाँधो दो चाहे घुँघरू मेरे पाँव में
मैं बहकता नहीं था मगर क्या करूँ
मैं बहकता नहीं था मगर क्या करूँ
आज मौसम सुहाना ग़ज़ब ढा गया
मैं बहकता नहीं था मगर क्या करूँ
आज मौसम सुहाना ग़ज़ब ढा गया

हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम

हर नज़र उठ रही है तुम्हारी तरफ़
नज़र उठ रही है
हर नज़र उठ रही है तुम्हारी तरफ़
और तुम्हारी नज़र है हमारी तरफ़
और तुम्हारी नज़र है हमारी तरफ़
आँख उठाना तुम्हारा तो फिर ठीक था
आँख उठाना तुम्हारा तो फिर ठीक था
आँख उठा कर  झुकाना ग़ज़ब ढा गया
आँख उठाना तुम्हारा तो फिर ठीक था
आँख उठा कर  झुकाना ग़ज़ब ढा गया

हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम

मस्त आँखों का जादू जो शामिल हुआ
मस्त आँखों का जादू
मस्त आँखों का
मस्त आँखों का जादू जो शामिल हुआ
मेरा गाना भी सुनने के क़ाबिल हुआ
मेरा गाना भी सुनने के क़ाबिल हुआ
जिसको देखो वही आज बेहोश है
जिसको देखो वही आज बेहोश है
आज तो मैं दीवाना ग़ज़ब ढा गया
जिसको देखो वही आज बेहोश है
आज तो मैं दीवाना ग़ज़ब ढा गया

इक तो महफ़िल तुम्हारी हसीं कम न थी
उस पे मेरा तराना ग़ज़ब ढा गया
हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम
………………………………………………………………………
Haal kya hai dilon ka-Anokhi ada 1973

Artist: Jeetendra, Rekha, Vinod Khanna

2 comments:

Anonymous,  September 20, 2017 at 1:37 PM  

What a data ᧐f un-ambiguity and preserveness of
preecious familiariy аbout unexpected feelings.

Anupam September 24, 2017 at 9:54 PM  

पीठ ऊंची ऊँट की ऊंचाई से नहीं होती
होती ही है पीठ ऊंची ऊँट की

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