मन रे तू काहे ना धीर धरे-चित्रलेखा १९६४
किसी की सेवा में भले ही प्राण झोंक दो मगर वो आपके
साथ नहीं मरेगा. जो जैसा जीवन में आ रहा है उसे
निर्लिप्तता से स्वीकारते चलो तो बंधन से मुक्ति जल्दी
मिलेगी. नश्वर संसार एक मोह माया के जाल के सिवा
कुछ नहीं है.
संगीतकार रोशन का संगीत गहराई का असर करने वाला
है. उनकी कोई भी धुन आपको निष्प्राण नहीं लगेगी.
इस गीत की ख़ूबसूरती ये है कि इसे जबरन लंबा बनाने
की कोशिश नहीं की गई है. साहिर के सरल से मगर गूढ़
अर्थ वाले बोल हैं जो यही सन्देश देते हैं धीर धरो, मन
को काबू में रखो.
गीत के बोल:
मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने
जिनका मोह करे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
इस जीवन की चढ़ती ढलती
धूप को किसने बांधा
रंग पे किसने पहरे डाले
रुप को किसने बांधा
काहे ये जतन करे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
उतना ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभा दे
जन्म मरण का मेल है सपना
ये सपना बिसरा दे
कोई न संग मरे
मन रे तू काहे ना धीर धरे
वो निर्मोही मोह ना जाने
जिनका मोह करे
हो मन रे तू काहे ना धीर धरे
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Man re too kaahe na dheer-Chitralekha 1960
Artist: Pradeep Kumar
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