फिर वही रात है-घर १९७८
लगता है जब किसी घटनाक्रम की पुनरावृत्ति होती है.
किसी घटना विशेष के होने पर भी दिमाग सोचता है
ऐसा तो उस दिन भी हुआ था !
फिल्म घर से एक गीत सुनते हैं किशोर कुमार का गाया
हुआ. गुलज़ार के बोल हैं और आर डी बर्मन का संगीत.
गीत के बोल कुछ अलग हट के हैं. लोकप्रिय होने की
एक वजह ये भी है कि आम जनता ने इसे बार बार सुना
ताकि बोलों का पूरा अर्थ समझ में आये.
गीत के बोल:
फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
हो रात भर ख्वाब में देखा करेंगे तुम्हें
फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
हो रात भर ख्वाब में देखा करेंगे तुम्हें
फिर वही रात है
हो मासूम सी नींद में फिर कोई सपना चले
हमको बुला लेना तुम पलकों के पर्दे तले
ये रात है ख्वाब की ख्वाब की रात है
फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
काँच के ख्वाब हैं आँखों में चुभ जायेंगे
हो पलकों पे लेना इन्हें आँखों में रुक जायेंगे
हो ये रात है ख्वाब की ख्वाब की रात है
फिर वही रात है
फिर वही रात है ख्वाब की
हो रात भर ख्वाब में देखा करेंगे तुम्हें
फिर वही रात है
रात है रात है
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Phir wahi raat hai-Ghar 1978
Artist: Vinod Mehra, Rekha
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