हम काले हैं तो क्या हुआ-गुमनाम १९६५
था अपने समय में. हैदराबादी अंदाज़ में गाया गया ये
गीत अनूठा है और इसी से प्रेरित हो कर देशप्रेमी फिल्म
में भी ऐसा ही एक गीत रखा गया था.
एक ज़माना था जब महमूद का कद समकालीन नायकों
के बराबर हुआ करता था. उनके लिए फिल्मों में विशेष
भूमिका लिखी जाती थी और उन्हें नायक के बराबर या
नायक से ज्यादा मेहनताना मिला करता था. ऐसा हमने
जगह जगह पढ़ा है और यह कितना सत्य है ये तो बता
पाना मुश्किल काम है.
महमूद को पार्श्व गायन के काफी अवसर मिले हैं हिंदी
फिल्मों में. इस गाने के मूल गायक हैं रफ़ी और साथ
में महमूद की आवाज़ में भी कुछ शब्द हैं. शैलेन्द्र के
लिखे गीत की तर्ज़ बनाई है शंकर जयकिशन ने.
गीत के बोल:
ख़्यालों में ख़्यालों में
ख़्यालों में ख़्यालों में
जय हंगामा
कहाँ भाग रही तुमें
या अल्लाह काले से डर गए क्या
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
हम तेरे तेरे तेरे चाहने वाले हैं
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
ये गोरे गालाँ तन्दाना
ये रेशमी बालाँ तन्दाना
ये सोला सालाँ तन्दाना
हाय तेरे ख़यालाँ तन्दाना
हम तेरे तेरे तेरे चाहने वाले हैं
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
तुम किधर को जाताईं तन्दाना
क्यूँ पास न आताईं तन्दाना
क्या मार ये बाताँ तन्दाना
दिल तोड़ ये घाताँ तन्दाना
हम तेरे तेरे तेरे चाहने वाले हैं
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
आँखां नारंगी की फाँकाँ
बाताँ ज्यूँ सारंगी
चालाँ जैसे मस्त शराबी
हालत रंग-बिरंगी
हम माना ग़रीब हैं तन्दाना
सूरत से अजीब हैं तन्दाना
पर फिर भी नसीब हैं तन्दाना
के तेरे करीब हैं तन्दाना
हम तेरे तेरे तेरे चाहने वाले हैं
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
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Ham kale hain to kya hua-Gumnaam 1965
Artist: Mehmood
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