मैं हूँ घोड़ा ये है गाड़ी-कुंवारा बाप १९७४
गीत बेहद चर्चित हुए थे अपने समय में. फिल्म में एक
मर्मस्पर्शी लोरी भी है.
फिल्म का नायक रिक्शा चालक है. ये गीत उसके रिक्शा
और उसकी कहानी का बयान करता है. रंगभेद पर इसमें
कटाक्ष भी है. मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत है और
उनकी लेखनी का पञ्च इस गीत में आप कुछ जगह ज़रूर
महसूस करेंगे.
गीत के बोल:
मैं हूँ घोड़ा ये है गाड़ी
मेरी रिक्शा सबसे निराली
हो ना गोरी है ना ये काली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
मैं हूँ घोड़ा ये है गाड़ी
मेरी रिक्शा सबसे निराली
हो ना गोरी है ना ये काली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
ओए सामने क्या देख रही
पीछे से पॉकेट मार रहा
एक रुपैया भाड़ा पैसेंजर इतना जाड़ा
मला नाको रे नाको रे नाको रे
मला नाको रे नाको रे नाको रे
हो दुबला पतला चलेगा
आड़ा तिरछा चलेगा
साला हो या हो वो साली
हो याने के आधी घरवाली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
ऐ हवलदार खाली मोटर दिख रही क्या
रिक्शा वाले को भी देखो
एक दिखा कर बीड़ी
रुकवा दी चार गाड़ी
अरे पैसे का खेला है खेला
अरे पैसे का खेला है खेला
हाँ जो मरज़ी है करा लो
पाकिट से नोट निकालो
फिर ले जाओ जेब खाली
ऐ ऐ ऐ बाजू हट बुरके वाली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
हम आज़ाद हैं मिस्टर
क्या इनसान और क्या जानवर
मेरे देश में सारे बराबर
मेरे देश में सारे बराबर
हो कुत्ता गद्दे पे सोए
मानव चादर को रोए
ज़िंदगी लगती है गाली
हो ज़िंदगी लगती है गाली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
मेरी रिक्शा सबसे निराली
हो ना गोरी है ना ये काली
हो हो हो हो हो हो हो हो
घर तक पहुंचा देने वाली
हे हे घर तक पहुंचा देने वाली
हो घर तक पहुंचा देने वाली
हे घर तक पहुंचा देने वाली
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Main hoon ghoda-Kunwara Baap 1974
Artists: Mehmood
3 comments:
पञ्च माने घूँसा
ये कलम वाला घूँसा है. इस गीत की कुछ बातें ऐसी हैं जो
सदा प्रासंगिक लगेंगी.
हाँ
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