बेकस की तबाही के-सोने की चिड़िया १९५८
की अदायगी, आशा की आवाज़ और ओ पी नैयर का संगीत है. ये
गीत निस्संदेह आशा भोंसले के बेहतर गीतों में से एक है.
हर इंसान भीड़ में अकेला है. इस फिल्म की नायिका बचपन में
कष्टों के दौर से गुजर कर एक सितारा बन जाती है. इसके बाद
भी उसका शोषण होता है और वो है आर्थिक शोषण. फिल्म का
शीर्षक इसलिए ऐसा है. गीत शिकायात वाला है. नायिका एक
असामाजिक तत्व से बचते हुए भागती हुई थियेटर के स्टेज पर
पहुँच जाती है और गाना गा रही है.
गीत की एक पंक्ति ‘मोती की तरह प्यासे’ नायिका की पूरी व्यथा
जाहिर कर देती है. सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे कितना दर्द
छुपा हुआ है ये एक आम आदमी नहीं समझ सकता.
गीत के बोल:
बेकस की तबाही के सामान हज़ारों हैं
दीपक तो अकेला है तूफ़ान हज़ारों हैं
तूफ़ान हज़ारों हैं
बेकस की तबाही के सामान हज़ारों हैं
दीपक तो अकेला है तूफ़ान हज़ारों हैं
तूफ़ान हज़ारों हैं
लाचार किया हमको लाचार किया हमको
दुख दर्द जलन आँसू क्या क्या ना दिया हमको
क्या क्या ना दिया हमको
भगवान तेरे हम पर एहसान हज़ारों हैं
भगवान तेरे हम पर एहसान हज़ारों हैं
दीपक तो अकेला है तूफ़ान हज़ारों हैं
तूफ़ान हज़ारों हैं
सूरत से तो इन्सां हैं दुश्मन हैं मुहब्बत के
सब चोर हैं डाकू हैं माँ बहनों की इज़्ज़त के
सूरत से तो इन्सां हैं दुश्मन हैं मुहब्बत के
सब चोर हैं डाकू हैं माँ बहनों की इज़्ज़त के
माँ बहनों की इज़्ज़त के
कहने को ज़माने में इन्सान हज़ारों हैं
कहने को ज़माने में इन्सान हज़ारों हैं
दीपक तो अकेला है तूफ़ान हज़ारों हैं
तूफ़ान हज़ारों हैं
हमदर्द नहीं मिलता फिर आये जहाँ भर में
हमदर्द नहीं मिलता फिर आये जहाँ भर में
मोती की तरह प्यासे रोते हैं समन्दर में
मोती की तरह प्यासे रोते हैं समन्दर में
अपना ही नहीं कोई अनजान हज़ारों हैं
अपना ही नहीं कोई अनजान हज़ारों हैं
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Bekas ki tabahi ke-Sone ki chidiya 1958
Artist: Nutan
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