Jan 30, 2018

चाहे कितनी कठिन डगर हो-जीत १९४९

कथनी और करनी में अंतर खत्म होने पर ही आदमी महात्मा
कहलाता है. सुनने में आसान लगता है मगर कंटकाकीर्ण मार्ग
से ताउम्र निकलना पडता है और सभी बाधओं को स्वीकारते
हुए उनसे पार भी पाना पडता है.

गांधी जी ने असम्भव सी लगने वाली इस देश की आजादी की
राह आसान बनाने में अपना बड़ा योगदान दिया. आज के दिन
एक प्रेरणादायी गीत सुनते हैं सन १९४९ की फिल्म जीत से.

इसे लिखा है प्रेम धवन ने और इसका संगीत तैयार किया है
अनिल बिश्वास ने. शंकर दासगुप्ता और सुरैया ने इसे गाया है.



गीत के बोल:

चाहे कितनी कठिन डगर हो
हम क़दम बढ़ाते जायेंगे
क़दम बढ़ाते हँसते गाते
धूम मचाते जायेंगे
चाहे कितनी कठिन डगर हो
हम क़दम बढ़ाते जायेंगे
क़दम बढ़ाते हँसते गाते
धूम मचाते जायेंगे
चाहे कितनी कठिन डगर हो

जिस पथ पर तुम चरण धरोगे
जिस पथ पर तुम चरण धरोगे
अपने नैन बिछाऊँगी
तुमरे पथ के काँटों को
पलकों से उठाती जाऊँगी
तुमरे पथ के काँटों को
पलकों से उठाती जाऊँगी
जब लग प्रान रहेंगे
जब लग प्रान रहेंगे
एक दूजे का साथ निभायेंगे

क़दम बढ़ाते जायेंगे
क़दम बढ़ाते हँसते गाते
धूम मचाते जायेंगे
चाहे कितनी कठिन डगर हो

इस दुखियारे जग में तुम ही
नैनन का उजियारा हो
सूने लम्बे जीवन-पथ का
तुम ही एक सहारा हो
सूने लम्बे जीवन-पथ का
तुम ही एक सहारा हो
तुम संग हो तो पाँव मेरे
कभी न ठोकर खायेंगे

क़दम बढ़ाते जायेंगे
क़दम बढ़ाते हँसते गाते
धूम मचाते जायेंगे
चाहे कितनी कठिन डगर हो

हमको मिल कर इस दुखियारे
जग को स्वर्ग बनाना है
हमको मिल कर इस दुखियारे
जग को स्वर्ग बनाना है
 सब अपने हैं सबको
मानवता का प्यार सिखाना है
सब अपने हैं सबको
मानवता का प्यार सिखाना है
जो सबको उजियारा दे
जो सबको उजियारा दे
एक ऐसी ज्योत जलायेंगे

क़दम बढ़ाते जायेंगे
क़दम बढ़ाते हँसते गाते
धूम मचाते जायेंगे
चाहे कितनी कठिन डगर हो
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Chahe kitni kathin dagar ho-Jeet 1949

Artists: Dev Anand, Suraiya

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