शाम सुहानी नदी के किनारे-निशान डंका १९५२
गीता दत्त का गया हुआ. इस गीत का संगीत तैयार किया है
बसंत प्रकाश ने. बसंत प्रकाश संगीतकार खेमचंद प्रकाश के
भाई थे.
श्रेणी बनाने के शौक़ीन लोग इसे ‘नदी का किनारा’ हिट्स श्रेणी
में रखते हैं. पुराना गीत है अतः इसके शौक़ीन भी पुराने ही
होंगे.
इसका सबसे पहला वर्ज़न जो मैंने सुना था वो था-हवा में उड़ता
जाए वर्ज़न. ये ऐसे गीत होते थे जो रेडियो सीलोन से रेकोर्ड किये
गए होते थे. इनमें गाना कुछ यूँ रेकोर्ड होता था मानो गाने वाले
दरियागंज से कश्मीरी गेट चले जाते हों और फिर वापस आ जाते
हों. ये आना-जाना लगा ही रहता है गीत में. इन्हें हम अंग्रेजी
में कहते हैं-HMUJ version.
गीत के बोल:
शाम सुहानी नदी के किनारे
मचलने लगे आज अरमान हमारे
नदी के किनारे
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
रुपहली सुनहरी ये दरिया की मौजें
हो ओ ओ आये चढती हुई जैसे राजा की फौजें
भागें छुप जाएँ हम डर के मारे
भागें छुप जाएँ हम डर के मारे
नदी के किनारे
शाम सुहानी नदी के किनारे
मचलने लगे आज अरमान हमारे
नदी के किनारे
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
आओ आओ मोहब्बत की दुनिया बसायें
मन को भाति नहीं आपकी ये अदायें
निराले हैं दुनिया से नखरे तुम्हारे
नदी के किनारे
निराले हैं दुनिया से नखरे तुम्हारे
नदी के किनारे
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
शाम सुहानी नदी के किनारे
मचलने लगे आज अरमान हमारे
नदी के किनारे
हो ओ ओ ओ ओ ओ ओ
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Shaam suhani nadi ke kinare-Nishan Danka 1952
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