कोई शहरी बाबू-लोफर १९७३
आवाज़ में. उनके गाये इस किस्म के गीत आम जनता में
काफी लोकप्रिय थे ७० के दशक में.
आनंद बक्षी की ये रचना है और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का
संगीत. गीत अपने ज़माने का हिट गीत है और आज भी
ये सुनाई देता है कभी कभी. मुमताज़ और फरीदा जलाल
पर यह गीत फिल्माया गया है.
गीत के बोल:
कोई सहरी बाबू
दिल लहरी बाबू हाय रे
पग बाँध गया घुँघरू
मैं छम-छम नच दी फिराँ
कोई सहरी बाबू
दिल लहरी बाबू हाय रे
पग बाँध गया घुँघरू
मैं छम-छम नच दी फिराँ
मैं तो चलूँ हौले-हौले
फिर भी मन डोले हाय रे
मेरे रब्बा मैं की कराँ
मैं छम-छम नच दी फिराँ
कोई सहरी बाबू
दिल लहरी बाबू हाय रे
पग बाँध गया घुँघरू
मैं छम-छम नच दी फिराँ
पनघट पे मैं कम जाने लगी
नटखट से मैं शरमाने लगी
पनघट पे मैं कम जाने लगी
नटखट से मैं शरमाने लगी
धड़कन से मैं घबराने लगी
दरपन से मैं कतराने लगी
मन खाये हिचकोले
ऐसे जैसे नैया डोले हाय रे
मेरे रब्बा मैं की कराँ
मैं छम-छम नच दी फिराँ
कोई सहरी बाबू
दिल-लहरी बाबू हाय रे
पग बाँध गया घुँघरू
मैं छम-छम नच दी फिराँ
सपनों में चोरी से आने लगा
रातों की निंदिया चुराने लगा
सपनों में चोरी से आने लगा
रातों की निंदिया चुराने लगा
नैनों की डोली बिठा के मुझे
ले के बहुत दूर जाने लगा
मेरे घूँघटा को खोले
मीठे-मीठे बोल बोले हाय रे
मेरे रब्बा मैं की कराँ
मैं छम-छम नच दी फिराँ
कोई सहरी बाबू
दिल लहरी बाबू हाय रे
पग बाँध गया घुँघरू
मैं छम-छम नच दी फिराँ
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Koi shehri babu-Loafer 1973
Artists: Mumtaz, Farida Jalal
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