दर्पण झूठ ना बोले-दर्पण १९७०
आनंद बक्षी की रचना है और लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का संगीत.
नायक अपनी कार में चला जा रहा है और पार्श्व में ये गीत
बज रहा है.
सत्य कड़वा होता है इस वजह से जनता को इसे सुनना पसंद
नहीं होता. सत्य का मार्ग कंटकाकीर्ण है अतः उस पर कदम
बढाने में हर किसी की सांस फूलती है. बहुत हिम्मत वाले भी
इस पर चल कर दुनिया के रुख की वजह से अपना साहस खोते
नज़र आते हैं. अंत में विजय शूरवीरों की ही होती है. जीवन
में इस प्रकार की जंग का निरंतर सामना करने वाले को हम
शूरवीर नहीं तो और क्या कहेंगे.
सत्य के मार्ग पर मीठी गोलियाँ और चॉकलेट नहीं मिला करती.
इस पर नरम नरम गद्दे और बिछौने बी नहीं होते. धिक्कार और
घृणा अवश्य मुफ्त प्राप्त होती रहती है कदम कदम पर.
गीत के बोल:
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
जो सच था तेरे सामने आया
हंस ले चाहे रो ले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
दर्पण झूठ ना बोले
बंधन तोडा जा सकता है
जग को छोड़ा जा सकता है
बंधन तोडा जा सकता है
जग को छोड़ा जा सकता है
अपने आप से भाग रहे हो
अपने आप से भाग रहे हो
तुम हो कितने भोले हो
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
दूर किनारा टूटी नैया
लेकिन पूछे ये पुरवैया
दूर किनारा टूटी नैया
लेकिन पूछे ये पुरवैया
अपने आप बने तुम मांझी
अपने आप बने तुम मांझी
फिर काहे मन डोले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
ऐसी हैं जीवन की बतियाँ
या तो ये मन मींच ले अँखियाँ
ऐसी हैं जीवन की बतियाँ
या तो ये मन मींच ले अँखियाँ
या फिर ना घबराये जब
सच्चाई घूंघट खोले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
जो सच था तेरे सामने आया
हंस ले चाहे रो ले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
दर्पण झूठ ना बोले दर्पण झूठ ना बोले
……………………………………………………….
Darpan jhooth na bole-Darpan 1970
Artist: Sunil Dutt
0 comments:
Post a Comment