गया अँधेरा हुआ उजारा-सुबह का तारा १९५४
ये अपने ज़माने का बेहद लोकप्रिय गीत हैं.
फिल्म के शीर्षक कैसे और क्यूँ रखे जाते हैं ये अब
तक मुझे पूरी तरह से समझ नहीं आया. उपन्यास
के शीर्षक तो काफी हद तक समझ आ जाते हैं
लेकिन कुछ फिल्मों में शीर्षक और कथानक के बीच
सम्बन्ध ढूंढते ढूंढते फिल्म समाप्त हो जाती है और
सिनेमा घर की बत्तियाँ जल जाती हैं.
सुनते हैं सन १९५४ की फिल्म सुबह का तारा से
शीर्षक गीत जिसे तलत महमूद संग लता मंगेशकर
ने गाया है. नूर लखनवी की रचना है जिसका संगीत
सी रामचंद्र ने तैयार किया है.
भारतीय रेल के जनरल कम्पार्टमेंट में जब आप फँस
जाएँ और सारी सवारियां जबरन आँख मिचमिचाती हुई
सोती मिले और बैठने की जगह ना मिले तो आप ऐसे
गीत गा कर मन बहला सकते हैं. रात का सफर होगा
तो बैठे बैठे गुनगुनाते हुए सुबह हो ही जायेगी.
गीत के बोल:
गया अँधेरा हुआ उजारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
टूटे दिल का बँधा सहारा चमका चमका सुबह का तारा
साँस खुशी की तन में आई अरमानों ने ली अंगड़ाई
जाग उठीं उम्मीदें सारी जाग उठी तक़दीर हमारी
हमें किसी ने दूर पुकारा
चमका चमका सुबह का तारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
मुरझाई कली क्या फिर से खिलेगी
मुरझाई कली क्या फिर से खिलेगी खोई हुई क्या राहत मिलेगी
खोई हुई क्या राहत मिलेगी
कहीं ये तारा टूट न जाये सुबह का साथी छूट न जाये
आँखों में रह जाये नज़ारा
चमका चमका सुबह का तारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
गई उदासी रौनक छाई रोशनी अब जीवन में आई
हँसी खुशी का छेड़ो तराना नाच उठे मन झूमे ज़माना
समा सुहाना प्यारा प्यारा
चमका चमका सुबह का तारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
गया अँधेरा हुआ उजारा चमका चमका सुबह का तारा
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Gaya andhera hua ujala-Subah ka tara 1954
Artists: Pradeep Kumar, Jayshri
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