चेहरे से अपने आज तो-पालकी १९६७
है शकील बदायूनीं ने और गाया है रफ़ी ने. नौशाद ने
इसकी धुन तैयार की है.
लिखने वाले लिख जाते हैं, गाने वाले गा जाते हैं और
सरदर्द हो जाता है सुनने वालों का. अब ऐसे गानों का
एप्लीकेशन कहाँ किया जाये. हर व्यक्ति तो कोमल ह्रदय
कवि होता नहीं जो इस तरीके से अपनी भावनाओं का
इज़हार करे.
लड़के लड़कियों की बात करें तो गर्ल फ्रेंड की वोकेबुलरी
भी तो इतनी फरटाईल हो के उसे ये सब समझ आये.
किसी कम पढ़ी लिखी को ये सब सुना दिया तो वो तो
बेहोश हो कर धड़ाम से गिरेगी ज़मीन पर.
गीत के बोल:
सदका उतारिये के ना लागे कहीं नज़र
सेहरे में आज फूल सा मुखड़ा है जलवागर
चेहरे से अपने आज तो परदा उठाईये
चेहरे से अपने आज तो परदा उठाईये
लिल्लाह मुझको चाँद सी सूरत दिखाईये
जन्नत है ये मकाम दर-ए-यार है ये घर
जन्नत है ये मकाम दर-ए-यार है ये घर
दिल कह रहा है आज यहीं सर झुकाईये
चेहरे से अपने आज तो परदा उठाईये
उठिए खुदा के वास्ते
उठिए खुदा के वास्ते लग जाइए गले
रस्मो रिवाज़ शर्मो हाय सब हटाईये
चेहरे से अपने आज तो परदा उठाईये
लिल्लाह मुझको चाँद सी सूरत दिखाईये
ये क्या के हम ही बढ़ते रहें आपकी तरफ़
थोड़ी सी दूर आप भी तशरीफ़ लाइए
थोड़ी सी दूर आप भी तशरीफ़ लाइए
चेहरे से अपने आज तो परदा उठाईये
…………………………………………………..
Chehre se apne aaj to-Palki 1967
Artists: Rajendra Kumar, Waheeda Rehman
0 comments:
Post a Comment