Jul 21, 2019

ऐ प्यासे दिल बेज़ुबान-बेगुनाह १९५७

शंकर जयकिशन के खजाने से एक गीत सुनते हैं आज.
इसका ओर्केस्ट्राईज़ेशन ज़बरदस्त है. इसी वजह से इसके
मुरीद ओर्केस्ट्रा वाले ज्यादा हैं. शंकर जयकिशन के गाने
गाने में आसान लगते हैं मगर ऐसा नहीं है. गाने का
मेलोडी कंटेंट तब तक पूरा नहीं होता जब तक साथ में
वाद्य यंत्र ना बजें.

मुकेश के गाये इस गीत की रचना की है शैलेन्द्र ने.




गीत के बोल:

ए प्यासे दिल बेज़ुबान तुझको ले जाऊं कहां
ए प्यासे दिल बेज़ुबान तुझको ले जाऊं कहां
आ आ आ आ आ आ
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलाएगा
ए प्यासे दिल बेज़ुबान

घटा झुकी और हवा चली तो हमने किसी को याद किया
चाहत के वीराने को उनके गम से आबाद किया
घटा झुकी और हवा चली तो हमने किसी को याद किया
चाहत के वीराने को उनके गम से आबाद किया
ए प्यासे दिल बेज़ुबान मौसम की ये मस्तियां
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलायेगा
ए प्यासे दिल बेज़ुबान

तारे नहीं अंगारे हैं वो अब चांद भी जैसे जलता है
नींद कहां सीने पर कोई भारी कदमों से चलता है
तारे नहीं अंगारे हैं वो अब चांद भी जैसे जलता है
नींद कहां सीने पर कोई भारी कदमों से चलता है
ए प्यासे दिल बेजुबान दर्द है तेरी दास्तां
आ आ आ आ आ आ
आग को आग में ढाल के कब तक जी बहलाएगा
ए प्यासे दिल बेज़ुबान

कहां वो दिन अब कहां वो रातें तुम रूठे किस्मत रूठी
गैर से भेज छुपाने को हम हंसते फिरे हंसी झूठी

ए प्यासे दिल बेज़ुबान दुःख के रहा तेरा जहां
आ आ आ आ आ आ आ
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Ae pyase dil bezuban-Begunah 1957

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