देखों रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा-मेला १९७१
मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीत को मन्ना डे ने गाया
है. इस फिल्म के गानों में यही सबसे कम सुना गया
गीत है.
फिल्मों में दो भाइयों के बिछुड़ने की एक सबसे बड़ी
वजह कुम्भ का मेला हुआ करती थी. आज की फ़िल्में
थोड़ी अपग्रेड हो गयी हैं. आज शॉपिंग मॉल जैसी जगह
पर भाई बिछड़ते हैं. पुरानी फिल्मों में कुछ और वजहें
भी हुआ करती थीं मसलन कोई बच्चे को चुरा ले गया,
किसी दुर्घटना घटने की वजह से.
गीत के बोल:
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
दोनों टुकड़े एक ही दिल के बिछड़े ऐसे के नहीं मिलते
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
फूल खिले दो साथ मगर हाय ऐसे भी माली आँख ना मीचे
फूल खिले दो साथ मगर हाय ऐसे भी माली आँख ना मीचे
एक तो महके लग के गले से एक पड़ा कहीं पांव के नीचे
खेल है किस्मत का
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
दोनों टुकड़े एक ही दिल के बिछड़े ऐसे के नहीं मिलते
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
कैसा उजाला है ये न जाने हाथ को हाथ नहीं पहचाने
कैसा उजाला है ये न जाने हाथ को हाथ नहीं पहचाने
अचरज है कितना
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
कैसा मिलन है आज एक भाई भाई को यूँ सीने से लगाये
जैसे के अपने हाथों में हो कोई अपनी ही लाश उठाये
चले साँसों में चिता खेल है किस्मत का
देखो रे हुआ लहू से लहू कैसे जुदा
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Dekho re hua lahu se-Mela 1971
Artists: Sanjay Khan, Feroz Khan
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