महफ़िल सोई-इंतकाम १९६९
था. अपने समय की चर्चित फिल्म बन गई थी जिसमें
एक गीत आ जाने जान का भी बड़ा योगदान है.
फ़िल्म में हेलन पर फिल्माया गया ऐसा एक और गीत
है जिसे लता मंगेशकर ने गाया है. श्वेत श्याम युग में
हेलन के ऊपर फिल्माए गये और लता द्वारा गाये गीत
गीत काफी हैं मगर वे सब ५० के दशक में ही हैं.
इस बात के अलावा फ़िल्म का कथानक भी और फिल्मों
के रूटीन कथानकों से थोडा अलग है. इसमें भी हालांकि
फ़िल्मी लटके झटके और मसाले मौजूद हैं मगर प्रस्तुति
में काफी मामलों में नयापन है. अभिनेता अशोक कुमार
और रहमान को कहानी में काफी कवरेज है. फ़िल्म का
अंत सुखान्त है और बिछड़े हुए मिल जाते हैं. पुराने
गीले शिकवे भुला कर सब एक हो जाते हैं. अंत भला
तो सब भला.
गीत के बोल:
महफ़िल सोई ऐसा कोई
महफ़िल सोई ऐसा कोई होगा कहाँ
जो समझे जुबां मेरी आँखों की
महफ़िल सोई ऐसा कोई होगा कहाँ
जो समझे जुबां मेरी आँखों की
महफ़िल सोई
रात गाती हुई गुनगुनाती हुई
बीत जायेगी यूँ मुस्कुराती हुई
रात गाती हुई गुनगुनाती हुई
बीत जायेगी यूँ मुस्कुराती हुई
सुबह का समां पूछेगा कहाँ
गये मेहमान जो कल थे यहाँ
महफ़िल सोई ऐसा कोई होगा कहाँ
जो समझे जुबां मेरी आँखों की
महफ़िल सोई
आज थम के गज़र दे रहा है खबर हा
कौन जाने इधर आये ना सहर
आज थम के गज़र दे रहा है खबर हा
कौन जाने इधर आये ना सहर
किसको पता ज़िन्दगी है क्या
टूट ही गया साज़ ही तो था
महफ़िल सोई ऐसा कोई होगा कहाँ
जो समझे जुबां मेरी आँखों की
महफ़िल सोई
……………………………………………
Mehfil soyi-Inteqam 1969
Artists: Helen
0 comments:
Post a Comment